1.39 हे.शासकीय जमीन को राजस्व विभाग के सह पर हो गया पट्टा, मामला तहसील सरई के झुरही-गजरा बहरा मुख्य मार्ग बकहुल का मामला
सिंगरौली 28 जनवरी। भले ही सूबे के मुखिया भू माफियाओं पर नकेल कसने व नेस्तनाबूत करने की बात कहते है लेकिन सिंगरौली जिले में भू माफिया अधिकारियों से सांठगांठ कर सरकारी जमीनों में कब्जा करते जा रहे हैं एक ऐसे ही मामले का खुलासा ग्रामीणों ने किया है जहां शासकीय भूमि को कूटरचित दस्तावेजों के माध्यम से अपने नाम कराने में आशातीत सफलता प्राप्त की है। जिसमें एक जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक का चर्चित समिति प्रबंधक शामिल है। जिन्होंने जवाहर बाग के लिए आरक्षित भूमि को अपने नाम पट्टा करा लिया है। यह आराजी तहसील सरई क्षेत्र के बकहुल गांव की है। जहां करीब 1.39 हे.का पट्टा कराया है। जिसकी शिकायत ग्रामीणों ने कलेक्टर के जनसुनवाई में कर चुके हैं।
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तहसील सरई के ग्राम बकहुल निवासी तकरीबन एक दर्जन ग्रामीणों ने कलेक्टर को दिये शिकायती पत्र में बताया है कि शासकीय भूमि आराजी नं.546 जिसका रकवा 1.39 हे.झुरही-गजरा बहरा मुख्य मार्ग से लगी हुई बेसकीमती भूमि पर वर्ष 1996-97 में 5 लाख रूपये की लागत से जवाहर बाग लगाया गया था। यह पंचायत के परिसम्पत्ति में दर्ज है। उक्त जमीन पर शासकीय पक्का कूप भी बना हुआ है। लेकिन उक्त आराजी के 1.39 हे.रकवा पर फर्जी तरीके से कूटरचित दस्तावेज तैयार कर बकहुल निवासी राजकुमार सिंह के द्वारा भू स्वामी स्वत्व में दर्ज करा लिया गया है। यहां तक की उक्त जमीन पर बाउण्ड्री एवं घर भी बना लिया गया है।
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ग्रामीणों ने कलेक्टर को दिये शिकायती पत्र में यह भी बताया कि उक्त आराजी पर जिसने यह कूटरचित दस्तावेज तैयार कर पट्टा दर्ज कराया है वो कोई और नहीं बल्कि को-ऑपरेटिव बैंक सरई के समिति सेवक राजकुमार सिंह हैं। इनके नाम बकहुल एवं ठरकठइला में लगभग 10 एकड़ पट्टे की भूमि है और शासकीय जमीन का कूटनीतिक दस्तावेज तैयार कराकर 2014-15 में अपने नाम दर्ज करा लिया गया है। उक्त बेसकीमती भूमि की कीमत वर्तमान में लगभग 1 करोड़ रूपये की आंकी जा रही है।
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इस पूरे खेल में तत्कालीन राजस्व अमले की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जा रही है। जिनके सांठ-गांठ से समिति प्रबंधक को भूमि स्वामित्व का अधिकार सौंप दिया। जबकि राज्य शासन राजस्व विभाग के नियमानुसार 2 अक्टूबर 1984 के आधार पर ही सरकारी भूमि पर काबिज कास्त को ही पट्टा दिये जाने का आदेश था। लेकिन समिति प्रबंधक ने जवाहर बाग के लिए आरक्षित भूमि पर नजर गड़ाये हुए था और अंतत: सफलता भी प्राप्त कर लिया है। फिलहाल समिति प्रबंधक के क्रियाकलापों व भूमि का फर्जी व्यवस्थापन का मामला कलेक्टर की जनसुनवाई में पहुंच चुका है। अब देखना है कि कलेक्टर सीएम के अभियान को कितना अहमियत देते हैं या फिर सब कुछ दिखावे तक ही सीमित रह जायेगा।
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जमीन व जवाहर बाग दोनों गायब
जिले के सरई तहसील के ग्राम बकहुल में वर्ष 1996-97 में लाखों रूपये की लागत से शासकीय जमीन पर ग्राम पंचायत के द्वारा लाखों रूपये की लागत से जवाहर बाग का निर्माण कार्य कराया गया था। जिसमें फलदार पौधे लगाये गये थे व एक भवन व एक कूप का निर्माण कराया गया था। उक्त आराजी का व्यवस्थापन कराये जाने के बाद समिति प्रबंधक ने जहां पेंड़-पौधों को तहस नहस कराकर बाउण्ड्री का निर्माण करा दिया तो वहीं कूप को भी अपने कब्जे में ले लिया है। ग्रामीणों का आरोप है कि मौके पर न तो जवाहर बाग की आरक्षित भूमि है और न ही जवाहर बाग है। ग्रामीणों का सवाल है कि आखिरकार जवाहर बाग के लिए आरक्षित भूमि को किसने गटक लिया।
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कलेक्टर पर टिकी ग्रामीणों की आस
ग्राम बकहुल में शासकीय जमीन को राजस्व अधिकारियों की मिलीभगत से पट्टा दिलाने का जो खेल खेला गया है इसको लेकर ग्राम बकहुल के ग्रामीण अब लामबंद हो गये हैं। शासकीय जमीनों पर किये गये कब्जे को लेकर सरकार एक्शन मोड में है। अब यह सवाल कुरौंध रहा है कि आखिर सरकारी जमीन को क्या प्रशासन खाली करा पायेगा या फिर यह जमीन भू माफिया के कब्जे में ही रहेगी। इधर भू माफिया से त्रस्त कई ग्रामीणों ने मोर्चा खोलते हुए उसके क्रियाकलापों का धीरे-धीरे प्याज के छिलकों की तरह परत दर परत खोलने का काम शुरू कर दिये हैं। ग्रामीण इस पर कितनी सफलता अर्जित करते हैं यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा।
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