Falgu Nadi Story: फाल्गू नदी बहती है जमीन के नीचे, Mata Sita ने दिया था श्राप,जानिए असली वजह
Falgu Nadi Story: बिहार की फल्गु नदी के लिए के लिए कहते हैं कि इसे सीता माता ने श्राप दिया था. ऐसा क्यों कहा जाता है और इसके पीछे कौन सी पौराणिक कथा है आइये जानते हैं.

Falgu Nadi Story : हिन्दू धर्म के अनुसार, जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो परिवार के सदस्य उसे विधि-विधान के अनुसार पिंड दान करते हैं। ऐसा माना जाता है कि पिंडन का अधिकार उनके पुत्र का है। लेकिन आज के बदलते समय में पिंडदान कर लड़कियां भी अपना फर्ज निभा रही हैं. यदि आज के युग को सदियों पुराने युग से जोड़ा जाए तो भगवान श्री राम ने भी अपने पिता दशरथ को पिंड दान नहीं किया था।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार दशरथ का पिंडन माता सीता ने किया था। माता सीता के पिंडन के बाद ही राजा दशरथ की आत्मा को मोक्ष प्राप्त हुआ था। गया में माता सीता ने फाल्गु नदी की बालू का एक गांठ दान किया था। इसलिए गया में पिंडदान का विशेष महत्व माना गया है। लेकिन यह आश्चर्य की बात है कि जब माता सीता ने महानदी के वरदान के रूप में फाल्गु नदी की रेत की गांठ को अमर, सर्वव्यापी और अद्वितीय बना दिया। तो क्यों महानदी आज बेकार, बेकार और खाली हो गई। आइए जानते हैं इसके पीछे की दिलचस्प कहानी के बारे में…

पौराणिक कथाओं के अनुसार इसलिए माता सीता ने पिंडदान किया था
दरअसल वनवास के दौरान पिता की ओर से भगवान राम, लक्ष्मण और सीता राजा दशरथ को श्रद्धांजलि देने मंदिर गए थे। वहां श्री राम और लक्ष्मण श्राद्ध कर्म के लिए आवश्यक सामग्री लेने नगर गए थे। वहीं सीता जी ने दशरथ का पिंडदान किया था। वहीं स्थल पुराण की एक पौराणिक कथा के अनुसार राजा दशरथ की मृत्यु के बाद भरत और शत्रुघ्न ने अंतिम संस्कार की हर रस्म पूरी की थी। लेकिन राजा दशरथ को अपने ज्येष्ठ पुत्र राम से सबसे अधिक प्रेम था, इसलिए अंतिम संस्कार के बाद उनकी चिता की शेष राख उड़कर गया में नदी में चली गई।

उस समय राम और लक्ष्मण उपस्थित नहीं थे और सीता सोच-विचार कर नदी के किनारे बैठी थीं। तब सीता ने राजा दशरथ की छवि देखी लेकिन सीता को यह समझने में देर नहीं लगी कि राजा दशरथ की आत्मा राख के माध्यम से उनसे कुछ कहना चाहती है। राजा ने सीता से यह कहते हुए अपना पिंड दान करने की विनती की कि उनके पास समय कम है। वहाँ दोपहर का समय था और पिंडदान का समय समाप्त हो रहा था। इसलिए सीता जी ने फाल्गु नदी की रेत से पिंड बनाकर पिंड दान किया।
इसलिए फल्गु नदी का श्राप
सीता ने राजा दशरथ की राख को मिलाकर अपने हाथों में उठा लिया और इस दौरान उन्होंने फाल्गु नदी, गाय, तुलसी, अक्षय वट और एक ब्राह्मण को राजा दशरथ का पिंडन दिया जो इस पिंडन के साक्षी के रूप में वहां मौजूद थे। पिंड देने के बाद जैसे ही श्रीराम और लक्ष्मण सीता के करीब आए, तब सीता ने उन्हें यह सब बताया। लेकिन राम को सीता की बातों पर विश्वास नहीं हुआ। जिसके बाद सीता ने पिंडदान में साक्षी बने पांच जीवों को बुलाया।

लेकिन राम के क्रोध को देखकर फाल्गु नदी, गाय, तुलसी और ब्राह्मण ने झूठ बोलते हुए पिंडन की बात को नकार दिया। लेकिन वहां मौजूद अक्षय वट ने माता सीता का समर्थन करते हुए सच कह दिया। इस वाक्य के बाद सीता जी ने क्रोधित होकर चारों प्राणियों को जो झूठ बोल रहे थे, श्राप दे दिया। और अक्षय वट को वरदान देते हुए उन्होंने कहा कि आप हमेशा पूजनीय रहेंगे और जो लोग पिंड दान करने आए हैं वे सभी आएंगे। अक्षय वट की पूजा करने से ही उनकी पूजा सफल होगी।
हिंदू संस्कृति में पिंडदान या श्राद्ध का विशेष महत्व है. इस पर भी गया में किए गए श्राद्ध को बहुत अहम कहा जाता है. यही नहीं गया की एक नदी फल्गु के किनारे किया गया श्राद्ध पूर्वजों के लिए सीधे स्वर्ग का रास्ता खोलता है, ऐसी मान्यता है. लेकिन इसी नदी को श्रापित भी माना जाता है. गया, बिहार की फल्गु नदी के लिए के लिए कहते हैं कि इसे सीता माता ने श्राप दिया था. ऐसा क्यों कहा जाता है और इसके पीछे कौन सी पौराणिक कथा है आइये जानते हैं।

नदी को माना था साक्षी –
इस समय सीता माता ने फल्गु नदी की रेत से पिंड बनाए और पिंडदान कर दिया. इस पिंडदान का साक्षी माता ने वहां मौजूद फल्गु नदी, गाय, तुलसी, अक्षय वट और एक ब्राह्मण को बनाया. लेकिन जब भगवान राम और लक्ष्मण वापस आए और श्राद्ध के बारे में पूछा तो फल्गु नदी ने उनके गुस्से से बचने के लिए झूठ बोल दिया. तब माता सीता ने गुस्से में आकर नदी को श्राप दिया और तब से ये नदी भूमि के नीचे बहती है इसलिए इसे भू-सलिला भी कहते हैं…..