सिंगरौली। जिले में इन दिनों ऐसा कोई अपराध नहीं है जो घटित ना हो रहा हो। अपराध सहित चोरियों के मामलों में साल दर साल आंकड़े बढ़ रहे हैं। वही इस समय चोरियों की घटनाओं के खुलासे के लिए गठित एसआईटी एसपी के मंसूबों पर खरे नहीं उतर पा रहे। इस बीच शहर के बीचो-बीच जुए का फड़ बिछा दिया गया है। यहां हर गांव में लाखों का खेल होता है। कुछ काम कर निकलते हैं तो कुछ कंगाल हो जाते हैं लेकिन पप्पू बनकर इस खेल को खिलाने वाले की कमाई पक्की है।
गौरतलब है कि ऊर्जाधानी में पैसों की कोई कमी नहीं है यहां महानगरों की तर्ज पर सारे अवैध कारोबार हो रहे हैं। चाहे फिर हेरोइन, चरस, गांजा, स्मैक या फिर जुआ का खेल। इन सभी अवैध कारोबार की जानकारी पुलिस के अलावा सभी को बखूबी रहती हैं। जुआ का खेल इस जिले में कोई नया नहीं है अगर नया है तो इस खेल की जगह। इन दिनों नवानगर क्षेत्र के माजन मोड़ के आस – पास और उर्ती के जंगल में दिन ढलते ही फड बिछ जाता है।
बता दें कि यहां के दो नंबरिया और रईसजादे कम समय में अधिक पैसे कमाने के लिए रिस्क लेने के लिए तैयार है उन्हें सिर्फ इस बात की फ़िक्र रहती है कि खेल में वह पकड़े ना जाए। पप्पू जुआरियों के डर का बखूबी फायदा उठा रहा है वह प्रोटेक्शन के नाम पर प्रति कैंडिडेट प्रतिदिन के हिसाब से एक हजार रुपए वसूल रहा है। वही इस खेल में जीते कोई भी उसका दो प्रतिशत हिस्सा फिक्स है। सूत्रों की माने तो कोतवाली और नवानगर के बीच चल रहे फड़ की जानकारी पुलिस को भी है लेकिन पुलिस इन जुआरियों पर कार्यवाही इसलिए भी नहीं करती क्योंकि इनसे उन्हें समाज को कोई खतरा नहीं लगता।
जुआरियों को मिली सुरक्षा
बताया जा रहा है कि जुआ माफिया द्वारा जुआ की फड़ को संचालित करने का नेटवर्क तैयार किया गया है। इस काम में एक दर्जन से अधिक बेरोजगार युवाओं की 500 रुपए रोज पर सेवाएं ली जाती हैं। जुआ खेलने वाले न केवल सिंगरौली के बल्कि उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ के जुआरी भी पहुंच रहे हैं। सुरक्षा के लिहाज से जहां जुआ संचालित हो रहा है वहां इन्हीं बेरोजगार युवकों को उन रास्तों पर साधारण तौर पर बैठा दिया जाता है कि अगर इस क्षेत्र से कोई भी संदिग्ध वाहन आता दिखाई दे। तो वह तुरंत फोन पर सूचना दें, जिससे जुआरियों को पुलिस से पूर्ण सुरक्षा दी की जाती है।
थाना सेट, निगरानी के लिए लगाए लडक़े !
सूत्रों की माने तो फड़ों पर पुलिस कार्रवाई न करें, इसके लिए जुआ माफिया पहले थाना के स्टाफ को सेट कर लेता है। उसके वाबजूद पुलिस की दूसरी टीम कार्रवाई न कर दे, इसलिए फड़ संचालन में लड़कों (निगरानी करने वाले) को तैनात किया जाता है। फड़ संचालक मामूली पढ़े-लिखे और बेरोजगार युवकों को इस काम में लगाते हैं। उन्हें पगार के साथ मोबाइल फोन भी उपलब्ध कराते हैं। जहां से फड़ तक पुलिस के पहुंचने का अंदेशा होता है वहां लड़के लगाए जाते है। जो पुलिस वाहन आता देख मोबाइल फोन के जरिए फड़ संचालक को सूचना दे देते हैं। नतीजे में जब तक पुलिस फड़ तक पहुंची है तब तक वहां सब कुछ सिमट चुका होता है।