उमरिया – कहने को तो हम 21वीं सदी में प्रवेश कर चुके है और देश के प्रधानमंत्री स्मार्ट सिटी का सपना दिखा रहें हैं, सरकारों के द्वारा डिजिटल इंडिया का नारा लगाया जाता है, हम स्वतंत्रता की 75 वीं वर्ष गांठ मनाने जा रहे हैं लेकिन जमीनी स्तर पर जहां पहले थे आज भी वहीं है, आज भी गांव में सड़को के नाम पर कीचड़ मिलता है, अब तो हद ही हो गई कि उसी कीचड़ में गर्भवती महिलाओं की डिलेवरी हो जाती है और पैदा होती है मामा की भांजी। इस बात को भाजपा के बांधवगढ़ विधानसभा विधायक शिवनारायण सिंह मानते हैं कि कहीं न कहीं सिस्टम में कमी है।
मामला उमरिया जिला मुख्यालय से लगभग 5 किमी. दूर ग्राम सेवई का है, जहां आजादी के 75 साल पूरे होने के बाद भी आज तक सड़क का निर्माण नही हो सका है, चौकानें वाली बात तो यह है कि विधायक के पिता और तत्कालीन अजाक मंत्री ज्ञान सिंह के द्वारा भूमि पूजन किया गया है, वहीं बांधवगढ़ विधायक मानते हैं कि सड़क न बनने के कारण ग्रामीण आदिवासियों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। हम आपको बता दें कि इस गांव में आज तक जननी एक्सप्रेस नहीं गई है, गर्भवती महिलाओं का प्रसव कहीं कीचड़ में हो जाता है तो कहीं प्रसव के दौरान महिलाएं दम तोड़ देती हैं। इस बात को लेकर ग्रामीण जन कई बार उमरिया कलेक्टर से आवेदन निवेदन कर चुके हैं, मगर आज तक इस सड़क के बनने का हल नही निकल पाया है, अब जब ग्रामीण कलेक्टर से मिले तो कलेक्टर ने कह दिया कि जिनकी जमीन है उनके पास जाओ वही सड़क बनायेगें।
भाजपा के नेता बोलते हैं झूठ
म. प्र. में जब पहली बार कांग्रेस की सरकार गिरी थी और भाजपा की सरकार बनी थी तब से भाजपा के नेता मंच पर इस बात को कहते नही थकते कि हमने म. प्र. में सड़को का जाल बिछा दिया है, गांव में सड़को को बनाने के लिए मुख्यमंत्री सड़क योजना और प्रधानमंत्री सड़क योजना चलाई जा रही है, लेकिन आज तक ये योजना भी नाकाफी गुजरी है, वहीं बांधवगढ़ विधानसभा के भाजपा विधायक शिवनारायण सिंह इस बात को मानते है कि कहीं न कहीं कमियां हैं।
जनप्रतिनिधि सहित अधिकारी जिम्मेदार
एक ओर सरकार आदिवासियों के कल्याण के लिए हर वह प्रयास करने के लिए आतुर है जिसके वह हकदार है, मगर जनप्रतिनिधि की अकर्मण्यता व जिला प्रशासन और सरकार की अनदेखी के कारण आज सेवई गांव के बूढ़े से लेकर बच्चे तक इस कीचड़ में सनकर मुख्य मार्ग तक पहुँच पाते हैं, जिससे यह स्पष्ट है कि सरकार की योजनाओं को मूर्त रुप देने की बजाय योजनाओं को दरकिनार कर अधिकारी उनमें पलीता लगा रहें हैं।