बैतूल– मध्य प्रदेश के बैतूल में अब लड़कियां सेल्फ डिफेंस में लाठियां चलाना सीख रही हैं। लड़कियों को लाठी चलाने की ट्रेनिंग दी गई है और अब लठ्बाजी में लड़कियां अपना जौहर दिखाएंगे । दरअसल मध्य प्रदेश में पहली बार राज्यस्तरीय लाठी प्रतियोगिता उज्जैन में आयोजित की जा रही है जिसमें बैतूल की 13 लड़कियां और 12 लड़के शामिल हो रहे हैं ।
लट्ठबाजी का नाम आते ही गांव के लठैत और लाठियां भांजने की तस्वीर जेहन में आ जाती है। बैतूल में लाठी चलाते लड़के और लड़कियों को देख हर किसी ने दांतों तले उंगली दबा ली। लट्ठबाजी के दौरान लड़कियों इतनी तेजी से लाठियां घुमा रही थीं कि नजरों का ठहरा पाना मुश्किल हो रहा था। 23 और 24 अक्टूबर को उज्जैन में आयोजित राज्यस्तरीय लाठी प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए यहां टीम का चयन किया जा रहा था।
दिसंबर में राष्ट्रीय लाठीबाजी प्रतियोगिता तमिलनाडु, महाराष्ट्र या दिल्ली में आयोजित हो सकती है। इसके लिए प्रदेश में तैयारियां तेज कर दी गई हैं। बैतूल में परंपरागत लाठी खेल संघ के राज्य स्तरीय रैफरी विनोद बुंदेले के मुताबिक उज्जैन में आयोजित प्रतियोगिता में चयन के बाद प्रदेश की टीम का चयन होगा। इसमें 14 आयु वर्ग से लेकर 30 आयु वर्ग तक के प्रतिभागी शामिल होंगे। यही चयनित खिलाड़ी राष्ट्रीय प्रतियोगिता में हिस्सा लेंगे। फिलहाल प्रदेश के शहडोल, जबलपुर, बैतूल, ग्वालियर, उज्जैन समेत 16 जिलों में परंपरागत लाठी खेल संघ कार्यरत हैं।
इस खेल में चार प्रमुख विधाएं हैं। जिनमें सिंगल लाठी घुमाना, डबल लाठी घुमाना, लकड़ी पटा बाजी खेलना और युद्ध है।इनमें सिंगल और डबल लाठी घुमाने की विधा में खिलाड़ी एक और दो लकड़ियों का इस्तेमाल करता है, जिसमें अलग-अलग कलाओं का प्रदर्शन किया जाता है।पटा बाजी में खिलाड़ी पर 14 अलग-अलग कलाओं के जरिए वार किए जाते हैं, जिसका वह बचाव करता है। इसे लगातर दो मिनट तक खेलना होता है।युद्ध की विधा में खिलाड़ी हेलमेट, सिंगाड, लेगगार्ड, चेस्टगार्ड पहनकर दो खिलाड़ी खेलते हैं। फ्री स्टाइल की इस प्रतियोगिता में सीधे चेहरे पर, सिर पर, पैरों के अंदरूनी हिस्से पर वार नहीं किया जा सकता।
इसमें लाठी के कनपटी, गाल पर लगने पर 3 पॉइंट, कंधे से लेकर पैर के घुटने तक लाठी लगने पर एक पॉइंट, छाती या पीठ पर सीधे वार होने पर 2 पॉइंट मिलते हैं।इसमें बांस और बेंत की लाठियों का इस्तेमाल होता है। जो अंगूठे की मोटाई से कैच मोटी और खिलाड़ी के कान तक की ऊंचाई की लकड़ी होती है।
बैतूल में इस खेल में लड़कियों का खास क्रेज है। यही वजह है कि करीब 75 लड़के-लड़कियां कई महीने से लाठीबाजी की ट्रेनिंग ले रही हैं। राजश्री पाल बताती हैं कि वे पिछले चार महीने से इसकी ट्रेनिंग ले रही हैं। यह परंपरागत खेल है और जिस तरह का माहौल है। यह खेल सेल्फ डिफेंस के लिए महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है।
जानकारी के मुताबिक लाठीबाजी को देश में राष्ट्रीय स्तर के खेल के तौर पर मान्यता मिली है। इसे अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में शामिल करने के लिए दावेदारी पेश की गई है। दो साल से इन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी खेला जा रहा है। एक वर्ष और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर लाठी खेले जाने के बाद इसे ओलंपिक समेत अन्य अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में स्थान मिल सकता है।
इस खेल को लेकर प्रतियोगी राजश्री पाल का कहना है कि वे पिछले चार महीने से इसकी ट्रेनिंग ले रही हैं। यह परंपरागत खेल है और जिस तरह का माहौल है। यह खेल सेल्फ डिफेंस के लिए महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है। तुम्हें दूसरी प्रतियोगी यश का कहना है कि इसे सीखने का उद्देश्य यही है कि भारतीय विधा लुप्त न हो। यह ऐसी कला है, जिसमें सैकड़ों लोगों से घिरे होने के बावजूद खुद को सुरक्षित रखा जा सकता है। मिनट प्रतियोगिता के बढ़ते क्रेज को लेकर विनोद पहलवान, ट्रेनर का कहना है कि यह पारंपरिक विधा है जिसे राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल गई है मध्य प्रदेश में पहली बार प्रतियोगिता हो रही है और इसमें पहली बार बैतूल से लड़के लड़कियां शामिल हो रहे हैं।
इनका कहना है
लाठी हमारे इंडिया का पारंपरिक खेल है अभी तक ऐसे ओलंपिक गेम में या अन्य गेमों में नहीं दिया गया यह हम लोगों का दुर्भाग्य है। नवनीत श्रीवास–अखाड़ा,अध्यक्ष