संत ने ली थी जिंदा समाधि,गांव में आज तक नहीं आई कोई प्राकृतिक आपदा,
रंग पंचमी में मनाया जाता है त्यौहार,700 साल से चली आ रही परंपरा,
पूरी घटना सुने स्थानियों की जुबानी
शाजापुर —आज हम आपको दिखाने जा रहे है एक ऐसा सच जो देखने के बाद भी आप विश्वास नहीं कर पायेंगे…20 फीट गहरे गड्डे में खड़े सागौन की लकड़ी के 100 फ़ीट ऊचे स्तम्भ को लोग भगवन मानकर पूजते है और जिस 20 फीट गहरे गड्डे में इसे गाड़ा जाता हैं उसी गड्डे में डाले गए पान के पत्ते …नमक…नारियल..अगरबती..एक साल बाद भी हर रंग पंचमी पर पुरे सही सलामत निकलते हैं.. . दरअसल जिस गड्डे में ये पूजा का सामान गाड़ा जाता है वो एक संत की समाधी हे, जहा संत ने जीवित समाधी ली थी.. और ये है शुजालपुर का अवन्तिपुर बडोदिया गाँव जहां एक जिन्दा संत की समाधी पुरे इलाके की रक्षा करती है…यहाँ न कभी बाड़ आती है…न ही ओलावृष्टि और ठण्ड से कोई नुक्सान होता है… कोई आफत आने का भय हो तो इस समाधी पर शंख बजाते ही स्थिति सामन्य हो जाती है,हर साल इसी संत की समाधी पर रंग पंचमी पर देश भर से हजारो लोग यहाँ आते है और होता है जिन्दा चमत्कार।
शुजालपुर के अवन्तिपुर बडोदिया में रंगपंचमी पर न रंगों की बौछार होती है न गुलाल की होली…यहाँ रंगों का ये त्यौहार सालो से आस्था और भक्ति के अनूठे आयोजन के साथ मनाया जाता है…हर रंगपंचमी पर यहाँ लगता है आस्था का मैला …हजारो लोगो की मौजुदगी में यहाँ संत की समाधी पर गड़े 85 फिट के सागौन की लकड़ी से बने स्तम्भ को रंगपंचमी में उतार जाता है और समाधि खोदी जाती है…इस समाधि में लोग हजारों पान के पत्ते …नमक…नारियल..अगरबती.. मन्नत मांगते हुए डालते है और अगले साल जब फिर इस समाधी को खोद जाता है तो ये सब पान के पत्ते …नमक…नारियल..अगरबती.. हु बा हू सही निकलते है… जमीन में दफ़न रहने के बाद भी न नमक घुुुुलता है न नारियल का पानी सूखता है ,और तो और अगरबत्ती भी हु बा हू निकलती है। लोग एक साल पहले डाले गए नारियल फोड़कर प्रसाद बांटते
हैं और फिर ये समाधी एक बार फिर लोगो की मन्नत के हजारो नए पान के पत्ते ..नमक…नारियल..अगरबती..से भर जाती है…यहाँ आने वाले लोगो की मनोकामनाए पूरी होती है…विज्ञान भले ही इसे चमत्कार न मानता हो लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में यहाँ कभी बर्फ़बारी …ठण्ड…बारिश से नुक्सान न होने की पुष्टि करता है..हाल ही में पूरे मालवा में ओले गिरने से फसलें बर्बाद हुई लेकिन इस गाँव में कोई नुक्सान नहीं हुआ…विज्ञान इसे भी संयोग मानता है पर लोग इसे बाबा का चमत्कार मानते है… इतना ही नहीं सागौन की लकड़ी से बने स्तम्भ को पुरे दिन गाँव की हर समाज के लोग मिलकर रिपेयर करते है,इस स्तम्भ को रंगा जाता हे और जिन्हे संतान नहीं होती वे महिलाए इस स्तम्भ पर सूनी गोद भरने की कामना से उल्टा स्वास्तिक बनाती है और उनकी मनोकामना पूरी होने पर यहाँ पताशे बाटे जाते हे।
वीओ – इस समाधी के बारे में कहा जाता हे दरअसल आज से 900 साल पहले झांसी के एक गोस्वामी परिवार में जन्मे बाबा गरीब नाथ तीर्थ यात्रा पर निकले और नेवज नदी के किनारे बसे शुजालपुर के अवन्तिपुर बडोदिया इलाके में आकर इस दीव्य पुरुष के कदम थम गए..संवत 1344 में यानि आज से 724 साल पूर्व बाबा ने मां अन्नपूर्णा का मन्दिर स्थापित कर लोगो को अपने आध्यात्मिक ज्ञान से भक्ति और जीने की सही राह दिखाई …हजारों लोग उनके भक्त बन गए और उन्होंने मंदिर स्थापना के बाद वही जीवित समाधि ले ली …..समाधि लेने के बाद इसी संत ने संवत 1345 सावन माह में गंगा नदी के सोरम घाट पर तीर्थ करने गए अवन्तिपुर बडोदिया के लोगो को दर्शन दिए…तब संत को लोगो ने वापस गाँव चलने का आग्रह किया लेकिन उन्होंने खुद को ईश्वरीय मर्यादा में बंधा हुआ बताकर गाँव वालो के साथ वापस चलने से इनकार कर दिया…गाँव वाले नहीं माने और संत को जिद कर अपने डोले में बैठा लिया लेकिन संत अनत्र्ध्यान हो गए और एक पाती उन्होंने डोले में छोड कर उसमे लिखा की अवन्तिपुर बडोदिया में ओले गिरेंगे और यदि वंहा रंगपंचमी पर समाधि पर 9 हाथ के सागों के 9 पाट वाला स्तम्भ ध्वज स्थापित कर दे तो ईश्वर हमेशा इस गाँव पर आने वाली हर आपदा से रक्षा करेगा…लोगो ने वही किया और जब यहाँ ओले गिरे तो कोई नुक्सान नहीं हुआ क्योकि ये पूरी ओला वृष्टि एक कुएं में समां गई …यहाँ कई बार बाढ़ भी आई लेकिन कभी कोई हानि नहीं हुई… बस तब से आज तक यहाँ हर साल रंगपंचमी पर आस्था का मेला लगता है …क्या बेओलाद और क्या बीमार और परेशान लोग…सभी देश भर से यहाँ मनत मांगने आते हे…इस मेले की शुरुआत को 700 साल बीत चुके है..