सिंगरौली । सावन का महीना आते ही श्रद्धालु महादेव शंकर को प्रसन्न करने की कोशिश में जुट जाते हैं। महादेव शिव शंभू को भोलेनाथ भी कहा जाता है वह अपने भक्तों पर जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और उनको आशीर्वाद देते हैं । इंसान हो या फिर असुर महादेव ने हर किसी पर अपनी कृपा बरसाई है। भगवान शिव कैलाश पर भी वास करते हैं और श्मशान में भी। देशभर में भक्त भोलेनाथ को प्रसन्न करने और अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए उनको एक लोटा जल, दूध, बेलपत्र, भांग और धतूरा चढ़ाते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि भगवान शिव को भांग और धतूरा आखिर क्यों पसंद है…
महापुराण के अनुसार, अमृत प्राप्ति के लिए देवताओं और असुरों ने साथ मिलकर सागर मंथन किया था तो मंथन के दौरान अमृत से पहले हलाहल निकला था। यह विष इतना विषैला था कि इसकी अग्नि से दसों दिशाएं जलने लगी थीं, जिससे सृष्टि में हाहाकार मच गया था। सृष्टि सहित मानव कल्याण के लिए भगवान शिव ने हलाहल विष का पान कर लिया। विष को भगवान शिव ने गले से नीचे नहीं उतरने दिया था, जिसकी वजह से उनका कंठ नीला पड़ गया था और उनका नाम नीलकंठ पड़ गया। विष शिवजी के मस्तिष्क पर चढ़ने लगा, जिसकी वजह से वह काफी व्याकुल हो गए और अचेत अवस्था में आ गए।
भगवान शिव की इस तरह की स्थिति से इस संकट से उबारने के लिए देवताओं के सामने आदि शक्ति प्रकट हुई और उन्होंने भगवान शिव का उपचार करने के लिए जूड़ी बूटिया और जल से उपचार करने को कहा. आदि शक्ति के कहने पर देवताओं ने भगवान शिव पर भांग, धतूरा और बेलपत्र रखा और जल से लगातार जल अभिषेक किया. इससे शिव जी के फिर से दूर हो गया साथ ही उनके मस्तिष्क का ताप कम हुआ । उस समय से ही भगवान शिव को भांग, धतूरा बेहत पसंद है. इसलिए भक्त भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए इन चीजों को अर्पित करते हैं.
आयुर्वेद में भी भांग व धतूरा को औषधि के तौर पर बताया गया है। वहीं शास्त्रों में बेलपत्र के तीन पत्तों को रज, सत्व और तमोगुण का प्रतीक माना गया है। अगर यह सीमित मात्रा में लिया जाए तो औषधी के रूप में कार्य करता है और शरीर को गर्म रखता है। भोले बाबा ऐसे भगवान हैं जिन्हें प्रसाद के रूप में माखन-मिश्री या खोया की मिठाइयां नहीं चढ़ता हैं, लेकिन महाकाल को धतूरा सावन सोमवार के दिन जरूर चढ़ाया जाता है।
बेलपत्र की उत्पत्ति कैसे हुई, शिवलिंग पर कैसे चढ़ाएः स्कंद पुराण के अनुसार, एक बार माता पार्वती के पसीने की बूंद मंदराचल पर्वत पर गिर गई और उससे बेल का पेड़ निकल आया। चूंकि माता पार्वती के पसीने से बेल के पेड़ का उद्भव हुआ। अत: इसमें माता पार्वती के सभी रूप बसते हैं। वे पेड़ की जड़ में गिरिजा के स्वरूप में, इसके तनों में माहेश्वरी के स्वरूप में और शाखाओं में दक्षिणायनी व पत्तियों में पार्वती के रूप में रहती हैं। बेलपत्र में माता पार्वती का प्रतिबिंब होने के कारण इसे भगवान शिव पर चढ़ाया जाता है। भगवान शिव पर बेल पत्र चढ़ाने से वे प्रसन्न होते हैं और भक्त की मनोकामना पूर्ण करते हैं। इसे टहनी से चुन-चुनकर सिर्फ बेलपत्र ही तोड़ना चाहिए, कभी भी पूरी टहनी नहीं तोड़ना चाहिए। बेलपत्र इतनी सावधानी से तोड़ना चाहिए कि वृक्ष को कोई नुकसान न पहुंचे। बेलपत्र तोड़ने से पहले और बाद में वृक्ष को मन ही मन प्रणाम कर लेना चाहिए। महादेव को बेलपत्र हमेशा उल्टा अर्पित करना चाहिए, यानी पत्ते का चिकना भाग शिवलिंग के ऊपर रहना चाहिए। शिवलिंग पर दूसरे के चढ़ाए बेलपत्र की उपेक्षा या अनादर नहीं करना चाहिए।