बैतूल– मध्य प्रदेश के बैतूल में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की पत्नी और बेटी पेंशन के लिए भटक रहे है लेकिन उन्हें अभी तक पेंशन मिलना शुरू नही हुई । सरकारें बदलती रही और अधिकारी आते जाते रहे पर चंपा बाई की गुहार का किसी पर असर नही हुआ । स्वतंत्रता सेनानी का परिवार बदहाल जिंदगी जीने को मजबूर है ।
बता दें कि आजादी के लिये अंग्रेजो के कई जुल्म सहने और जेल जाने वाले सेनानियों के परिवारों के हालात कैसे है। उसकी बानगी बैतूल में देखी जा सकती है। जहां आजादी की लड़ाई में जेल यात्रा करने वाले एक सेनानी की 90 वर्षीय विधवा सेनानी पेंशन के अभाव में जानवर चराने को मजबूर थी और टूटे फूटे मकान में ही दिन गुजारने को मजबूर सेनानी की यह संगनी अब बस मौत का इन्तेजार कर रही ताकि उन्हें परेशानियों से मुक्ति मिल जाये।
तस्वीर में दिखाई पड़ रही ये वृद्धा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व द्वारका प्रसाद वर्मा की विधवा है। जो पहले जानवर चरा कर अपना गुजारा कर रही थी अब ये काम बंद कर दिया । पेंशन न मिलने से तंग रहे स्वतंत्रता सेनानी वर्मा ने 2002 में खुद पर केरोसिन छिड़ककर जान दे दी थी। 83 साल की उम्र में मौत को गले लगाने वाले द्वारका प्रसाद की अंत्येष्टि और तेरहवी तक लोगो ने चंदा जुटाकर की थी। आज उनकी विधवा पत्नी और बेटी मजदूरी कर अपना गुजारा कर रही है। अपनी जिंदगी के अंतिम दिन गुजार रही चंपा बाई के लिए यह दर्द दिल को सालने वाला है कि बरसो की ठोकरों और भटकने के बावजूद न उन्हें और न उनके स्वर्गीय पति को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होने की पेंशन मिली। चंपा बाई बताती है कि उनके पति भी बहुत भटके ।उन्होंने भी दफ्तरों के खूब चक्कर लगाए लेकिन कुछ नही हुआ।थककर घर बैठना पड़ा।
गौरतलब है कि द्वारका प्रसाद वर्मा भारत छोड़ो आंदोलन के तहत 21 नवम्बर 1942 को स्वतंत्रता आंदोलन में जेल गए थे। 7 दिनों तक जेल में रहने के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया था। उन पर आरोप था कि उन्होंने साथी स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर सरकारी संपत्ति को आग लगा दी थी। उस समय सेनानियों ने यहाँ कई रेलवे स्टेशन, लकड़ी डिपो,पोस्ट ऑफिसों को आग के हवाले कर दिया था। इन आरोपो के बाद स्व वर्मा जेल गए,रिहा भी हुए। इसका जेल प्रशासन ने प्रमाण पत्र भी जारी किया था। उनकी बेटी किरण बताती है कि पिता को सेनानी के तौर पर बस यात्रा के लिए निःशुल्क पास दिया गया। मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह ने प्रशस्ति पत्र दिया। हर राष्ट्रीय पर्व पर उन्हें बतौर सेनानी आमंत्रित भी किया जाता।लेकिन उन्हें पेंशन कभी नही दी। वे जीवन भर पेंशन पाने भटकते रहे। 83 साल की उम्र में उन्होंने तंग होकर खुद को आग के हवाले कर लिया। स्व. वर्मा जीवन भर पेंशन के लिए संघर्ष करते रहे।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के संघ ने भी उनकी पेंशन के लिए प्रयास किये लेकिन कुछ नही हुआ। उनके साथ जेल गए बाकी सेनानी और उनके परिवार पेंशन प्राप्त करते रहे। 19 अगस्त 2009 को तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर ने एसडीएम की एक जांच के बाद जिला कोषालय अधिकारी को भी पत्र भेजा था कि चंपा बाई को पेंशन देने के लिए सभी औपचारिकताएं पूर्ण कर पेंशन प्रदान की जाए । लेकिन इस पत्र और जांच के बाद भी 12 साल में कुछ नही हुआ। हालांकि इस मामले में संयुक्त कलेक्टर एमपी बरार का कहना है कि वे पूरे मामले की फाइल ढूंढ़वाकर पेंशन दिलाना सुनिश्चित करेंगे।
आजादी के 75 साल बीतने के बावजूद सेनानियों को सम्मान न दिला पाने की यह शर्मनाक दास्तान हमारे सिस्टम पर कई सवाल खड़े कर रही है। ऐसे में जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है।ये तस्वीर सेनानियों के प्रति बेरुखी का आईना बन गयी है। हालांकि मामला सामने आने के बाद कांग्रेस ने भी जिला प्रशासन को ज्ञापन सौंपकर स्वतंत्रता सेनानी की पत्नी को पेंशन देने की मांग की है ।
इनका कहना है
हेमंत का कहना है कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की विधवा पत्नी को पेंशन नहीं मिलने के मामले में प्रशासन को ज्ञापन सौंपा है तो उन्हें जल्द टेंशन दिलाई जाए अगर उनकी पेंशन शुरू नहीं हुई तो कांग्रेस आंदोलन करेगी। हेमंत वागद्रे- कांग्रेस नेता
इनका कहना है
चंपा का कहना है कि सभी जगह हाथ पर चला लिए बैतूल से लेकर भोपाल तक लेकिन पेंशन नहीं मिली पति ने भी पेंशन नहीं मिलने से परेशान होकर आग लगा ली थी जिससे उनकी मौत हो गई जानवर चरा कर गुजारा करते हैं। चंपा बाई, स्वतंत्रता सेनानी की पत्नी
इनका कहना है
सरकार किसी काम की नहीं रही पापा ने बहुत कोशिश की लेकिन कुछ नहीं हुआ कई बार पेंशन के लिए आवेदन लगाया पापा बहुत परेशान थी उनकी मौत के बाद हम लोगों ने भी कोशिश की लेकिन पेंशन नहीं मिली। किरण वर्मा, स्वतंत्रता सेनानी की बेटी।
इनका कहना है
प्रकरण संज्ञान में आया है इसका निराकरण किया जाएगा कोशिश की जाएगी कि उन्हें अतिशीघ्र पेंशन मिलना शुरू हो जाए। एमपी बरार,संयुक्त कलेक्टर