लक्ष्मण को नारायण का मिला साथ, हौले-हौले चढ़ने लगी पृथक विंध्य के नशे की खुमारी
सीधी — पृथक विंध्य प्रदेश की मांग को लेकर अर्से बाद एक नई अफीम का निर्माण कर उसे घोटा जा रहा है जिसका नशा धीरे-धीरे विंध्य के लोगों के रगों में उतारने के भागीरथ प्रयास किए जाने लगे हैं। इस मामले में प्रयास जिस स्तर के हो रहे हैं उसमें जुटने वाली भीड़ ये बयां करती है की हौले-हौले अब इस अफीम के नशे की खुमारी लोगों के सिर भी चढ़ने लगी है।
लक्ष्मण की रही पुरानी मांग…
मऊगंज के पूर्व विधायक लक्ष्मण तिवारी लम्बे समय से पृथक विंध्य की मांग को लेकर संघर्ष करते रहे हैं लेकिन अब उन्हे सत्ताधारी विधायक का भी साथ मिल चुका है। दरअसल मैहर विधायक नारायण त्रिपाठी भी अब विंध्य प्रदेश की मांग को लेकर सरकार के खिलाफ ही खुली चुनौती पेश कर रहे हैं।
प्रदेश अध्यक्ष की समझाइश को किया दरकिनार…
बीते दिनों भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा द्वारा मैहर विधायक नारायण त्रिपाठी को बुलाकर उन्हें इस मुद्दे पर समझाइश दी गई थी परंतु भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की समझाइश का मैहर विधायक पर कोई असर नहीं दिखा।
चुरहट में आयोजित विशाल कार्यक्रम के बाद यह लग रहा है कि विंध्य में भाजपा की मजबूत स्थिति को हिलाने के लिए मैहर विधायक कहीं न कहीं पर्याप्त साबित हो रहे हैं।
अतीत पर नजर..
दरअसल विंध्य प्रदेश के गठन के बाद वर्ष 1956 में इसका विलय हो गया था उसके बाद से लेकर कोई भी नेता इस मामले में आवाज उठाना उचित नहीं समझे। सूत्रों की मानें तो दिवंगत नेता श्रीनिवास तिवारी ने जरूर इसकी मांग की थी लेकिन उस दौरान उनकी भी नहीं सुनी गई। लेकिन आज जनसंख्या के हिसाब से विकास में पिछड़ रहे विंध्य के लिए यह जरूरी हो गया है कि विंध्य प्रदेश का पृथक से गठन हो। इसके लिए पहले कई नेता मांग किये लेकिन भाजपा एवं कांग्रेस के नेताओं ने इस मामले में चुप्पी साधे थे। पूर्व विधायक मऊगंज लक्ष्मण तिवारी तो लम्बे समय से इसकी मांग करते आ रहे हैं इसके लिए वो पूरे विंध्य क्षेत्र में जन जागरूकता के प्रयास भी कर चुके हैं। हालांकि वे अलग-थलग थे उन्हे सत्ता एवं विपक्ष का सहयोग नहीं मिल पा रहा था। अब सत्ता के विधायक नारायण त्रिपाठी का भी साथ उन्हे मिल चुका है। ऐसी स्थिति में यदि दोनों की जोड़ी यथावत रहेगी तो संघर्ष जारी रहने के दौरान कहीं न कहीं सरकार को इस मामले में सोचने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। अब देखना ये दिलचस्प होगा कि इस मसले में आगे क्या पहल होती है ?
क्या मंत्री न बनाए जाने का असर है ?
हालांकि कुछ लोग इस मुद्दे को लेकर मैहर विधायक को प्रदेश मंत्रिमंडल में तबज्जो न मिलने की कड़ी से जोड़कर विरोध करने की बात कर रहे हैं और कह़ीं न कहीं उनके द्वारा जो आवाज उठाई जा रही है वो उन्हें नजरअंदाज किए जाने के परिणाम स्वरूप सत्ता के खिलाफ ही मानी जा सकती है।
सत्ता एवं विपक्ष के नेता रहे नदारत…
चुरहट में आयोजित पृथक विंध्य प्रदेश की मांग को लेकर हल्ला बोल कार्यक्रम के दौरान भले ही सत्ता के विधायक नारायण त्रिपाठी मैहर मुख्य अतिथि बतौर उपस्थित हुए थे लेकिन इस दौरान भाजपा नेताओं की उपस्थिति कार्यक्रम में नहीं दिखी। वहीं विपक्ष के नेता भी कार्यक्रम से दूरी बनाये थे जबकि मौका था कि कांग्रेस के कुछ पदाधिकारी मौके पर पहुंचते तो कम से कम भाजपा सरकार को घेरने के लिए यह खासी रणनीति मानी जा सकती थी।
चुरहट की भीड़ क्या कहती है…?
चुरहट में आयोजित इस कार्यक्रम के मायनो पर यदि बात की जाए तो चुरहट कांग्रेस के दिग्गज नेता अजय सिंह राहुल का विधानसभा क्षेत्र है जो वर्तमान में भाजपा के कब्जे में है। यह विदित है कि लोकसभा चुनाव के दौरान वर्ष 2014 में कांग्रेस से लोकसभा के टिकट पाने वाले पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल सतना से प्रत्याशी रहे हैं। उस दौरान वर्तमान मैहर विधायक नारायण त्रिपाठी कांग्रेस में थे जो ऐन वक्त राहुल के खिलाफ हो गए थे एवं भाजपा में शामिल होने के बाद अंतत: राहुल को कम मतों से हार का सामना करना पड़ा। उधर वर्तमान में चुरहट विधानसभा सीट पर भाजपा का कब्जा है और अब सत्ताधारी दल के विधायक नारायण त्रिपाठी का जिले में पहला अभियान चुरहट में रहा। इस दौरान वाहनों के लम्बे काफिले के साथ कार्यक्रम का आयोजन हुआ जिसमें काफी लोगों की उपस्थिति भी रही।
नारायण के नारायणी तेवर…
नारायण, नारायण शब्द तो सब सुने होंगे हम उस नारायण की बात नहीं कह रहे हैं जो देवताओ को भिड़ाने का काम करते थे लेकिन वर्तमान के नारायण भी कमजोर नहीं हैं। कांग्रेस से भाजपा में शामिल होने के बाद फिर वे मैहर से भाजपा विधायक बने लेकिन प्रदेश सरकार द्वारा उन्हे मंत्रिमंडल में तबज्जो नहीं दिया गया इसका मलाल उन्हे जरूर बन रहा होगा। कारण जो भी हो लेकिन आखिरकार सरकार के खिलाफ उन्होने विंध्य प्रदेश को पृथक से बनाने की मांग को लेकर हल्ला बोल कार्यक्रम करना शुरू कर दिए हैं। यहां तक की वो अपनी भाजपा सरकार को ही आड़े हाथों लेते हुए यह भी कह दिए कि मध्यप्रदेश बना तो इंदौर, ग्वालियर के संस्थान वहीं रह गये किन्तु विंध्य से सबकुछ चला गया। सड़कों की हालत खस्ताहाल है, शिक्षा के मामले में विंध्य के युवाओं को इंदौर, भोपाल जाना पड़ता है। कोई बीमार पड़ गये तो नागपुर के पहले उनकी दवा होना संभव नहीं रहता। इसके अलावा अन्य समस्याओं को लेकर भी सरकार के खिलाफ नारायण ने आवाज बुलंद की। अब विंध्य के लोगों के लिए देखना ये बाकी होगा की इस मुद्दे की जिस अफीम को घोटा जा रहा है वो कब तक जारी रहेगी और उसका परिणाम क्या होगा ?
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