शिवपुरी के लाल ने कर कमाल कर दिया। अपनी जान हथेली में रख 210 लोगों को अफगानिस्तान से सुरक्षित भारत के सर जमीन पर लेकर पहुंचे है जी हां अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा होने के बाद वहां से लोगों को सुरक्षित निकालने की कवायद की जा रही है। मंगलवार को जिन 210 लोगों को सुरक्षित निकाल कर लाया गया, उस टीम का नेतृत्व आईटीबीपी के कमांडेंट व शिवपुरी में रहने वाले रविकांत गौतम ने किया। गौतम अपने साथियों सहित सभी भारतीयों को बिना खरोंच लगे सुरक्षित निकालकर लाए हैं। इस दौरान कुछ जगह पर तालिबान से आमना-सामना भी हुआ तथा अप्रत्यक्ष फायरिंग भी हुई।
देर शाम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अफगान हालात को लेकर उच्च स्तरीय बैठक की। बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृह मंत्री अमित शाह, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के अलावा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल मौजूद रहे। सूत्रों के अनुसार प्रधानमंत्री ने कहा कि सभी भारतीय, हिंदू-सिखों और अफगान नागरिकों को शरण दी जाएगी। इस बीच भारत ने अफगान नागरिकों के लिए इमरजेंसी ई-बवीजा की घोषणा की है। किसी भी धर्म को मानने वाले अफगान नागरिकों के लिए ई-बीजा की सुविधा ऑनलाइन होगी। ये वीजा 6 महीनों के लिए वैध होगा।
अपनों को लेकर परेशान
अफगानिस्तान के राष्ट्रपति ही अपना देश छोड़ भाग निकले। वहां सड़कों पर हथियारबंद तालिबानी लड़ाके हैं। ऐसे में पल-पल अपनों को लेकर खौफ में हैं। परिजनों और रिश्तेदारों से फोन पर संपर्कनहीं हो रहा। दिल बैठा जा है। दिनभर टीवी पर टकटकी लगाए रहते हैं। मोबाइल फोन पर बार-बार नंबर डायल करते हैं। कोई संपर्कनहीं हो पा रहा। अब तो केवल यहां बैठकर अपनों की सलामती के लिए सिर्फ दुआ कर रहे हैं। यह दर्द भरी पीड़ा है अफगानिस्तान के उन लोगों की जो भोपाल में रह हे हैं।तालिबान का शासन हो जाने पर वहां कोई भी सुरक्षित नहीं है। जो परिजन अभी अफगानिस्तान में रह रहे हैं उनसे पिछले एक सप्ताह से संपर्क बिल्कुल कटा हुआ है। यह सत्ता परिवर्तन की तरह है। तालिबान को विकास करना है तो सोच बदलने के साथ भारत से अच्छे संबंध रखने होंगे।
कई देशों ने अफगानिस्तान में अपने दूतावास बंद
रविकांत ने बताया कि अफगानिस्तान में हालात बेहद खराब हैं. यही वजह है कि वहां से लोगों को रेस्क्यू करने की कोशिश की जा रही है. उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने हमें जो जिम्मेदारी दी थी, उसे हमने पूरा किया. हम दो रात से नहीं सोए हैं. रविकांत गौतम ने कहा कि सरकार ने बहुत अच्छे से समन्वय किया और हम वहा फंसे हुए लोगों को साथ लेकर लौटे. बता दें कि अमेरिका की वापसी के बाद तालिबान ने फिर से इस पड़ोसी मुल्क पर कब्जा कर लिया है. जिससे अफगानिस्तान में हड़बड़ी के हालात हैं. कई देशों ने अफगानिस्तान में अपने दूतावास बंद कर दिए हैं. लोग अपनी जान बचाने के लिए अफगानिस्तान से निकलने में जुटे हैं.
अपनी गाडिय़ां ले जाकर लोगों को किया इकट्ठा
आईटीबीपी कमांडेंट रविकांत गौतम के परिवार ने बताया कि रविकांत अफगानिस्तान में 20 अगस्त 2020 से पदस्थ था और जब वहां पर हालात बिगडऩे लगे और तालिबान ने कब्जा करना शुरू किया, तो फिर सरकार के आदेश पर वहां पर काम करने वाले भारतीयों को मैसेज किया। साथ ही जो एमबीसी मजारे शरीफ, कंधार, काबुल, जलालाबाद में थे, उन्हें बंद कर दिया तथा वहां पर सुरक्षा के लिए तैनात सभी जवानों को इकट्ठा किया। इस दौरान जिन भारतीयों ने मैसेज किया, उनके ठिकाने मालूम करके अपनी गाडिय़ों से उन्हें इकट्ठा करना शुरू किया। रविकांत अपने साथ राजनायिक, आईटीबीपी कमांडो व अन्य जवानों सहित 99 तथा शेष वो भारतीय हैं, जो वहां पर अलग-अलग काम करते हैं। इनमें से कुछ एंबेसी पर आ गए थे, तथा कुछ को अपनी गाडिय़ां ले जाकर इकट्ठा किया। चूंकि अफगानिस्तान का हर शहर व हर सडक़ सेंसटिव होने की वजह से सुरक्षा के विशेष इंतजाम किए थे। हालात यह थे कि कभी भी कुछ भी हो सकता था, लेकिन सभी को लेकर एरोड्रम पहुंचे तथा वहां से एक प्लेन में लेकर आए, जबकि जामनगर गुजरात में दो प्लेन में शिफ्ट किया। परिवार ने बताया कि पहली खेप 15 अगस्त को भेजी थी तथा दूसरे चक्कर में अपने साथ 210 लोगों को सुरक्षित लेकर आए।
सडक़ से निकलने में था खतरा
कमांडेंट रविकांत के परिवार के अनुसार तालिबान में सरकार ने पहले ही इस्तीफा दे दिया था। ऐसे में वहां पर पूरी तरह से तालिबान ने कब्जा कर लिया। सुरक्षा बल को देखते ही वे एक्शन मोड में आ जाते थे, जिसके चलते जब भारतीयों को इकट्ठा करके गाडिय़ों से ला रहे थे, तो कई जगह ऐसे हालात बने कि तालिबानी सामने भी आ गए। लेकिन वो भी सीधे खून-खराबा करना नहीं चाहते थे, लेकिन उन्होंने सीधे अटैक न करते हुए अप्रत्यक्ष रूप से रोकने का प्रयास किया, फायरिंग भी हुई। चूंकि ऑपरेशन गोपनीय रखना है, इसलिए उसके बारे में अधिक नहीं बता सके, लेकिन खुशी है कि हमारा भाई किसी को भी खरोंच लगे बिना ही सुरक्षित निकाल ले आया।