विदिशा। यह शहर सदियों से भारतीय जनता पार्टी का गढ़ रहा है। यह शहर दशकों से शिवराज सिंह चौहान और उनके परिवार का है। यदि समय रहते अस्पताल की व्यवस्थाएं दुरुस्त होती तो शायद महिला की जान बचाई जा सकती थी। या फिर चौहान परिवार अपनी जमीन का छोटा सा टुकड़ा कोविड केयर सेंटर के लिए उपलब्ध करा देता तो यह हालात ना होते लेकिन एक महिला की अस्पताल की सीढ़ियों पर मौत हो गई क्योंकि अस्पताल में जगह नहीं थी, डॉक्टर ने उसका इलाज नहीं किया। यह कैसा कोविड-19 प्रोटोकॉल है जहां मरीजों को एडमिट कि नहीं किया जाता।
बता दे कि महिला एसडीएम ऑफिस में पदस्थ शासकीय कर्मचारी सुरेश केवल की मां थी। मां को सुबह सीने में दर्द हुआ था, जिसके बाद उन्होंने जिला अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती कराया। चिकित्सकों ने सलाह दी कि इनकी जांच कराई जाए। उसके बाद उनके बेटे उन्हें जांच कराने के लिए ऑटो से मेडिकल कॉलेज की फीवर क्लीनिक पहुंचे। यहां ऑटो से उतार तो दिया, लेकिन उनकी चलते की हिम्मत नहीं हुई, बुजुर्ग महिला वहीं मेडिकल कॉलेज की सीढ़ियों पर ही लेट गई। इस दौरान वहां मौजूद एक डॉक्टर ने मेल नर्स को बुलाया और ऑक्सीजन लेवल मापा जो मात्र 37 बताया गया। यानी उन्हें तत्काल ऑक्सीजन दिए जाने की जरूरत थी। तो डॉक्टर ने लापरवाही क्यों की अब देखना होगा कि ऐसे लापरवाह डॉक्टरों पर सीएम शिवराज क्या एक्शन लेते हैं।
मिली जानकारी के अनुसार डॉक्टर ने उनका एंटीजन टेस्ट किया जो निगेटिव आया। इसलिए उन्हें फीवर क्लीनिक में ऑक्सीजन नहीं दी गई बल्कि अस्पताल में भर्ती करने के लिए रेफर कर दिया गया। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान माताजी का ऑक्सीजन लेवल और नीचे चला गया एवं ऑक्सीजन की कमी के कारण उनकी मौत हो गई। सवाल सिर्फ इतना सा है कि इमरजेंसी की कंडीशन में कोविड प्रोटोकॉल को अनिवार्य क्यों किया गया है। सबसे पहले ऑक्सीजन क्यों नहीं दी गई। यदि महिला को ऑक्सीजन पहले ही दे दिया गया होता तो संभवत उसकी जान बचाई जा सकती थी ।