इंदौर। मिनी मुंबई में पुलिस की संवेदनहीनता देखने को मिली है यहां महिला की एक्सीडेंट में मौत के बाद सब इंस्पेक्टर सुरेश चंद्रवंशी ने f.i.r. तो दर्ज की लेकिन प्रिंट आउट यह कहकर नहीं दिया कि उसके पास सफेद पेपर नहीं है। हद तो तब हो गई जब सब इंस्पेक्टर ने पीड़ित परिवार से कहा कि बाजार से कागज ले आओ तभी प्रिंटआउट मिलेगा। इंदौर में नाइट कर्फ्यू लग जाने के कारण करीब 10 किलोमीटर दूर एक स्टेशनरी दुकान से पीड़ित परिवार ₹25 के कागज लेकर आया तब कहीं जाकर उसे एफ आई आर की कॉपी मिली इस मामले का खुलासा होते ही सब इंस्पेक्टर अवस्थी को सस्पेंड कर दिया गया है।
मिली जानकारी के अनुसार भंवरकुआं थाना क्षेत्र में गुरुवार शाम 6 बड़े सड़क हादसे में 16 साल के बेटे के साथ पैदल जा रही कालीबाई (50) को ट्रक ने टक्कर मार दी थी। जहां मौके पर उसकी मौत हो गई। अगले दिन पोस्टमॉर्टम करवाने पहुंचे परिजन ने पुलिस की करतूत खोली। बकौल जगदीश आर्ने ने बताया कि ‘मैं पीपल्याहाना कांकड़ में रहता हूं। कल 5:30 बजे मेरी भाभी खरगोन से इंदौर आईं। उनके साथ बेटा भी था। वे रोड क्राॅस कर रही थी, तभी तेज रफ्तार ट्रक ने टक्कर मार दी। उनकी मौके पर ही मौत हो गई।
पीड़ित के चाचा ने बताया कि हादसे के बाद भतीजे का फोन आया कहा कि काका तीन इमली चौराहे पर मां का एक्सीडेंट हो गया है घटना की जानकारी लगते ही पीड़ित के चाचा मौके पर पहुंचे और देखा कि भाभी का शव पड़ा है उन्होंने 100 नंबर और 108 नंबर डायल किया। कोई नहीं आया। फिर मैंने लोडिंग में ही भाभी का शव रखवाया। जिला अस्पताल पहुंचाया। करीब एक से डेढ़ घंटे तक शव वहीं पड़ा रहा। यह पुलिस और प्रशासन की लापरवाही है। वहां मौजूद लोग यह सब देख रहे थे।
पीड़ित परिजनों ने बताया कि हम रात 8- 8:30 बजे थाने पहुंचे। वहां पुलिस के दो स्टार थानेदार थे। उन्होंने कहा, हमने रिपोर्ट तो लिख ली है, लेकिन वो कम्प्यूटर पर ही है। उसका प्रिंट नहीं निकलेगा, क्योंकि थाने पर सफेद कागज नहीं हैं। मैंने कहा कि साहब इतना बड़ा भंवरकुआं थाना है, क्या एक भी ताव नहीं मिलेगा, तो उन्होंने मना कर दिया। फिर मैंने पूछा कहां मिलेंगे। वो बोले, थाने के सामने चले जाओ, दो-तीन दुकानों पर खोज लो। बाहर देखा, तो लॉकडाउन के कारण रात 9 बजे दुकानें ही बंद हो गई थीं। फिर मैं क्या करता। कोरे कागज की तलाश में रात भर भटकता रहा करीब 10 किलोमीटर दो एक दुकान में ली जहां से ₹25 का कागज लेकर मैं थाने पहुंचा तब कहीं जाकर एफ आई आर की कॉपी मिल पाई।
पीड़ित ने बताया कि थाने से करीब एक-डेढ़ किलोमीटर आगे तक गया। तब टॉवर चौराहे के आगे दुकान खुली दिखी। वहां से 25 रुपए के कागज खरीदे। फिर थाने पहुंचकर दिए। तब कहीं जाकर FIR दर्ज हुई। शुक्रवार भी दोपहर का 1 बज चुका है। मैं और मेरा परिवार यहीं जिला अस्पताल में बैठा रहा। साहब हम गरीब जरूर हैं, मानवता क्या होती है, समझते हैं। ऐसे समय तो पुलिस और प्रशासन को कार्रवाई जल्दी करवा देना चाहिए। हमें पता है कि हमारी पहुंच नहीं है, इसलिए सब हो रहा है। वरना, कोई बड़ा आदमी मरता, तो पुलिस दौड़-दौड़कर काम करती।
1 Comment
great post, very informative. I wonder why the other specialists of this sector don’t notice this. You should continue your writing. I’m sure, you’ve a great readers’ base already!