कोतवाली पुलिस पहले छोड़ा फिर पकड़ा, पुलिस की लीपापोती, एसपी के हस्तक्षेप के बाद हरकत में आई पुलिस
सिंगरौली। कोतवाली पुलिस एक बार फिर सवालों के घेरे में है। शनिवार को हुई घटना ने न केवल पुलिस की कार्यप्रणाली, बल्कि उसकी निष्पक्षता पर भी गंभीर प्रश्नचिह्न लगा दिया है। एनसीएल परियोजना अमलोरी में कार्यरत कलिंगा ओबी कंपनी के सहायक प्रबंधक हेमंत डाकुओं और एक अन्य कर्मचारी को कुछ वसूलीबाजों ने शहर के ट्रामा सेंटर के पास बुलाकर मिलें फिर बंद कमरे में बेरहमी से पीटा।
सूत्रों के अनुसार, इन आरोपियों ने कंपनी से 20 से 30 लाख रुपये की रकम की मांग की थी। जब कंपनी के प्रतिनिधियों ने देने से इंकार किया, तो उन्हें बंद कमरे में बंधक बनाकर लाठी-डंडों से पीटा गया। घटना की सूचना मिलते ही मामला कोतवाली पहुंचा, लेकिन पुलिस की कार्रवाई संदिग्ध रही। दोपहर में शिकायत दर्ज होने के बावजूद शाम तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
बताया जाता है कि आरोपियों को पूछताछ के नाम पर थाने बुलाकर छोड़ दिया गया, जबकि पीड़ितों के शरीर पर चोटों के गहरे निशान मौजूद थे। हालांकि थाना प्रभारी अशोक सिंह परिहार का कहना है कि तब तक शिकायत नहीं की गई थी तो सवाल यह है कि जब शिकायत ही नहीं हुई थी तो फिर किस आधार पर पुलिस ने आरोपियों को क्यों और कि पूछताछ के लिए थाने बुलाया था।
स्थानीय सूत्रों का कहना है कि कोतवाली पुलिस पहले से ही ‘लेन-देन’ की राजनीति में उलझी रहती है। इस मामले में भी रफादफा करने की कोशिश की गई, लेकिन जब घटना की जानकारी एसपी सिंगरौली तक पहुंची तो उन्होंने तत्काल कार्रवाई के निर्देश दिए। एसपी के सख्त रुख के बाद ही कोतवाली पुलिस हरकत में आई और रात के करीब बारह बजे यूपी के सोनभद्र जिले के भरुआ थाना क्षेत्र से गुड्डू सिंह, अंकित सिंह, डब्बू सिंह सहित चार आरोपियों को गिरफ्तार कर लाई।
पुलिस की देरी से अपराध पंजीबद्ध करने खड़े हो रहे सवाल
पुलिस की इस देरी से कार्रवाई ने और भी बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। आखिर दिनभर पुलिस क्या कर रही थी? सूत्रों की माने तो जब घटना अपहरण और बंधक बनाकर मारपीट की थी, तो मामला केवल वसूली और धमकी की धाराओं में ही क्यों दर्ज किया गया? क्या पुलिस ने जानबूझकर अपहरण का मामला दबाया ताकि किसी “बड़े नाम” की आंच न आए? उधर, कलिंगा कंपनी पर पहले से ही नौकरी के नाम पर पैसे लेने और ठेके में गड़बड़ी के आरोप लगते रहे हैं। जानकारों का कहना है कि कंपनी और स्थानीय प्रभावशाली लोगों के बीच लंबे समय से नौकरी दिलाने के नाम पर साठगांठ चल रही है, संभवत पैसे के लेनदेन के कारण यह पूरा विवाद हुआ है।
सिस्टम में ईमानदारी सिर्फ कागजों में
अब शहर में चर्चा यही है कि जब पीड़ित की चीख भी पुलिस की दीवारें नहीं हिला सकीं, तो क्या सिंगरौली में न्याय पैसे और पहुंच से तय होता है?”फिलहाल, पुलिस की भूमिका पर उठे ये सवाल न केवल उसकी साख को चुनौती दे रहे हैं, बल्कि यह भी साबित कर रहे हैं कि सिस्टम में ईमानदारी अब सिर्फ कागजों में बची है।
