सिंगरौली। जिले में शिक्षा व्यवस्था की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं, लेकिन मलगो और करैला स्कूलों की ताज़ा घटनाओं ने साफ कर दिया है कि डीईओ एसबी सिंह की निगरानी प्रणाली पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है। छात्रों की लगातार शिकायतें, शिक्षकों की मनमानी और निरीक्षण की खोखली प्रक्रिया अब सार्वजनिक होकर विभाग की असल तस्वीर बयां कर रही है। बच्चों का सीधा आरोप है कि डीईओ का निरीक्षण सिर्फ दिखावा है, समस्याओं पर कोई कार्रवाई नहीं होती।
गौरतलब है कि पिछले मंगलवार को मलगो स्कूल के लगभग दो दर्जन से अधिक छात्र-छात्राएँ जनसुनवाई में पहुँचे और जो हालात बताए, वह सीधे-सीधे प्रशासनिक लापरवाही का प्रमाण हैं। स्कूल में महीनों से कई विषयों की कक्षाएँ नहीं लग रहीं, प्रभारी प्राचार्य मनमर्जी से स्कूल का सामान घर ले जा रहे हैं, अंग्रेजी की कक्षाएँ बंद पड़ी हैं और शिक्षक गायब रहते हैं। बच्चे कई बार शिकायत कर चुके, पर विभाग ने कोई कार्रवाई नहीं की। प्रश्न यह है कि डीईओ आखिर किस निरीक्षण में व्यस्त रहते हैं कि इतनी गंभीर समस्याएँ उनकी नजर तक नहीं पहुंचीं। करैला स्कूल का मामला तो और भी चौंकाने वाला है। यहाँ छात्रों ने एक शिक्षक पर धार्मिक दबाव डालने, टीका-कलावा हटवाने और बौद्ध धर्म अपनाने के लिए प्रेरित करने जैसे गंभीर आरोप लगाए थे। कई सालों से छात्र शिक्षा विभाग में शिकायत दर्ज करवाएं हुए थे, लेकिन कार्रवाई शून्य। ऐसे संवेदनशील मामले में डीईओ की चुप्पी यह स्पष्ट करती है कि विभाग शिकायतें सुनता नहीं, बल्कि दबा देता है।
निरीक्षण टीप में लिखते हैं संतोषजनक
सबसे बड़ा सवाल यह है कि यदि डीईओ का निरीक्षण वास्तव में होता, तो ये समस्याएँ महीनों तक बढ़ती कैसे रहीं। चर्चा है कि निरीक्षण दल सिर्फ स्कूल की दीवारें, दो कमरे और एक उपस्थिति रजिस्टर देखकर लौट जाता है। रिपोर्ट में सब कुछ संतोषजनक लिखा जाता है, जबकि हकीकत छात्रों को रोज झेलनी पड़ती है। स्थानीय अभिभावकों का आरोप है कि डीईओ की प्राथमिकता में छात्र हित नहीं, बल्कि औपचारिक दौरे और कागजी संतोष शामिल हैं। यही कारण है कि जिले में शिक्षा व्यवस्था लगातार नीचे गिर रही है और जिम्मेदार डीईओ तमाशबीन बने बैठे हैं।
डीईओ के निरीक्षण पर खड़े हो रहे सवाल
इन दोनों स्कूलों की घटनाओं ने साबित कर दिया है कि निरीक्षण व्यवस्था फेल हो चुकी है और डीईओ की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठना स्वाभाविक है। अब विभाग को यह बताना होगा कि बच्चों की शिकायतें फाइलों में क्यों दबी रहीं? कार्रवाई क्यों नहीं हुई? और निरीक्षण आखिर किसके लिए होता है, बच्चों के लिए या कागजों के लिए? यदि जिला शिक्षा अधिकारी अब भी नहीं जागे तो जिले की शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह बे बेपटरी हो जाए तो हैरानी नहीं होगी, यह अलग बात है कि इसका खामियाज़ा आने वाली पीढ़ी को भुगतना पड़ेगा।
