वोल्वो पर चढ़ा इतना भार कि शिकायतें भी जाती है दब,प्रबंधन की क्षमता पर खड़े हो रहे सवाल
सिंगरौली। जयंत खदान में इन दिनों ऐसा माहौल है मानो एनसीएल ने नियमों को छुट्टी पर भेज दिया हो और चड्ढा कंपनी ने खदान की कमान संभाल ली हो। वोल्वो डंफरों की धांसू एंट्री देखकर लगता है कि खदान क्षेत्र कोई औद्योगिक स्थल नहीं, बल्कि ओवरलोड एक्सप्रेस का नया परीक्षण केंद्र बन गया है।
वोल्वो गाड़ियां इतनी बेपरवाह दौड़ रही हैं कि लगता है मानो उन्हें खुद पर ही भरोसा हो कि यह देश के हर नियम से ऊपर हैं। खदान के मजदूर इन्हें मजाक में चलती फिरती मौत या फिर माइनिंग मसीहा कहते हैं, क्योंकि इन्हें रोकने की हिम्मत ना एनसीएल करता है, ना परिवहन विभाग और ना ही वो नियम जिनकी कई मोटी किताबें दफ्तरों की अलमारियों में धूल फांक रही हैं।
गौरतलब है कि चड्ढा कंपनी के लिए ओवरलोडिंग अब एक आदत नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक परंपरा बन चुकी है। मजदूर बताते हैं कि वोल्वो में इतना माल लाद दिया जाता है कि खुद गाड़ी भी शायद सोचती होगी, अब और कितना सहूं। लेकिन प्रबंधन को इस बात से फर्क कहाँ पड़ता है। उन्हें तो बस उत्पादन का ग्राफ चाहिए, चाहे वह गाड़ी की रीढ़ तोड़कर ही क्यों न मिले। अगर कोई मजदूर सुरक्षा का मुद्दा उठाए तो उसे तुरंत सलाह दी जाती है वोल्वो है भैया, सब झेल लेगी। तुम अपने काम से काम रखो।
एनसीएल की भूमिका भी कम दिलचस्प नहीं। खदान में नियमों की अवहेलना इतनी खुलेआम होती है कि लगता है संस्थान ने भी चुप्पी धारण करने का लाइफटाइम एग्रीमेंट कर लिया है। निरीक्षण होता है, लेकिन केवल उन जगहों पर जहां कैमरा खड़ा हो। जहां असल समस्या है, वहां शायद निरीक्षण वाहन की जीपीएस भी जाने से मना कर देती होगी। मजदूर कहते हैं कि हर बार वही पुरानी कहानी दोहराई जाती है, जांच करेंगे, कार्रवाई होगी, पर होता उल्टा है, खदान में वोल्वो पहले से ज्यादा ओवरलोड होकर दौड़ती हैं और सुरक्षा पहले से ज्यादा हल्की पड़ती है।
प्रबंधन की क्षमता से ज्यादा वोल्वो में ताकत
चड्ढा कंपनी के जयंत खदान की सच्चाई यह है कि यहां नियमों से ज्यादा ताकत वोल्वो गाड़ियों को मिली हुई है। हादसे का डर मजदूरों में हमेशा रहता है, लेकिन जिम्मेदारी टालने की क्षमता प्रबंधन में और भी ज्यादा। वोल्वो पर अनियंत्रित भार हो, कैमरे पर मुस्कुराते निरीक्षण हों या मजदूरों की अनसुनी शिकायतें, खदान का सिस्टम देखने वाले सब कंपनियों से सेट है, उन्हें तो सुविधा शुल्क चाहिए, नियम कायदे बनाएं ही इसीलिए जाते हैं कि वह तोड़े जाएं।
बिना सामने आएं मजदूरों की एक ही मांग है, अगर खदान में वास्तव में कानून का शासन है, तो एक दिन वोल्वो को भी नियम पढ़ा दें। वरना जनता यही समझेगी कि जयंत खदान में गाड़ियां नहीं, मनमानी चलती है।
