नई दिल्ली — सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि उच्च जाति के किसी व्यक्ति को उसके कानूनी अधिकारों से सिर्फ इसलिए वंचित नहीं किया जा सकता है क्योंकि उस पर अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (SC/ST) के किसी व्यक्ति ने आरोप लगाया है। दरअसल एससी एसटी एक्ट से संबंधित उत्तराखंड के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि किसी भी व्यक्ति को लेकर घर के भीतर कहीं कोई अपमानजनक बाद जिसका गवाह ना हो वह अपराध नहीं हो सकता।
बता दें कि जस्टिस एल.नागेश्वर राव हेमंत गुप्ता और अजय रस्तोगी की पीठ ने यह टिप्पणी उत्तराखंड के पिथौरागढ़ एक व्यक्ति की याचिका पर गुरुवार को निपटारा करते हुए कहा है याचिकाकर्ता पर एससी एसटी एक्ट के तहत दायर आरोपपत्र पर खारिज कर दिया और कहा कि आरोपी पर अन्य धाराओं के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, ‘एससी/एसटी ऐक्ट के तहत कोई अपराध इसलिए नहीं स्वीकार कर लिया जाएगा कि शिकायतकर्ता अनुसूचित जाति का है, बशर्ते यह यह साबित नहीं हो जाए कि आरोपी ने सोच-समझकर शिकायतकर्ता का उत्पीड़न उसकी जाति के कारण ही किया हो।’ एसटी/एसटी समुदाय के उत्पीड़न और उच्च जाति के लोगों के अधिकारों के संरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी काफी क्रांतिकारी मानी जा रही है।
गाली दे देने से एससी एसटी एक्ट नहीं लग सकता
तीन सदस्यीय पीठ के फैसले में जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि उच्च जाति के व्यक्ति ने एससी/एसटी समुदाय के किसी व्यक्ति को गाली भी दे दी हो तो भी उस पर एससी/एसटी ऐक्ट के तहत कार्रवाई नहीं की जा सकती है। हां, अगर उच्च जाति के व्यक्ति ने एससी/एसटी समुदाय के व्यक्ति को जान-बूझकर प्रताड़ित करने के लिए गाली दी हो तो उस पर एससी/एसटी ऐक्ट के तहत कार्रवाई जरूर की जाएगी। मगर इसका भी गवाह होना चाहिए। एससी एसटी एक्ट के तहत अपमान व धमकियां नहीं आती इस कानून के तहत केवल उन्हें प्रकरणों को लिया जाता है जिसके कारण पीड़ित अपमान व उत्पीड़न झेलता है।
चारदीवारी में नहीं सार्वजनिक तौर पर अपमान करने पर एससी एसटी का अपराध
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि किसी भी व्यक्ति को उसके कानूनी अधिकारों से महज इसलिए वंचित नहीं किया जा सकता कि उस पर sc-st समुदाय के किसी व्यक्ति ने आरोप लगाए हैं।खंडपीठ ने कहा कि उच्च जाति का कोई व्यक्ति अगर अपने अधिकारों की रक्षा में कोई कदम उठाता है तो इसका मतलब यह नहीं है कि उसके ऊपर स्वतः एससी/एसटी ऐक्ट के तहत आपराधिक कृत्य की तलवार लटक जाए। सुप्रीम कोर्ट ने अपने पूर्व के फैसलों पर फिर से मुहर लगाते हुए कहा कि एससी/एसटी ऐक्ट के तहत उसे आपराधिक कृत्य ठहराया जा सकता है जिसे सार्वजनिक तौर पर अंजाम दिया जाए, न कि घर या चारदीवारी के अंदर जैसे प्राइवेट प्लेस में। सार्वजनिक स्थान का मतलब जहां पर अन्य लोग मौजूद हैं।
सवर्ण को मिली राहत
बेंच ने यह टिप्पणी एक पुरुष को एक महिला को जाति संबंधी गाली देने के लिए आपराधिक आरोप से मुक्त करते हुए दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपी पुरुष और शिकायतकर्ता महिला के बीच उत्तराखंड में जमीन की लड़ाई चल रही थी। दोनों ने इस संबंध में एक-दूसरे के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा रखा था। बाद में महिला ने यह कहते हुए एससी/एसटी ऐक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया कि पुरुष ने सहयोगियों के साथ मिलकर महिला को खेती करने से बलपूर्वक रोक दिया और उन्होंने महिला को जाति संबंधी गालियां भी दीं।सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को जातिसूचक गाली देने के आरोप से मुक्त करते हुए कहा कि आरोपी और शिकायतकर्ता के भी जमीनी विवाद चल रहा है दोनों पक्षों ने इस संबंध में एक दूसरे के खिलाफ केस दर्ज करा रखे हैं। याचिकाकर्ता पर घर की चारदीवारी मैं गाली गलौज करने का आरोप है ना कि सार्वजनिक तौर पर इसलिए याचिकाकर्ता के खिलाफ एससी एसटी एक्ट के तहत कार्यवाही करना उचित नहीं होगा।
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