Growth in Gautam Adani’s business:प्रमुख आर्थिक समीक्षक स्वामीनाथन अंकलेसरिआ अय्यर उन आलोचकों से असहमत हैं जो इस बात का दावा करते हैं कि अदाणी मुख्य रूप से इंफ्रास्ट्रक्चर में कारोबार करते हैं, जहां वास्तविक प्रतिभा की तुलना में सरकार की अनुकूलता अधिक महत्वपूर्ण है।
Growth in Gautam Adani’s business:हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट आने के बाद गौतम अदाणी के स्वामित्व वाले अदाणी ग्रुप को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। संसद से लेकर टीवी डिबेट्स में इस मुद्दे पर चर्चा हो रही है। दूसरी तरफ, इस रिपोर्ट के आने के बाद अदाणी ग्रुप की कंपनी के शेयर पर विपरीत असर हुआ है । अदाणी के मुद्दे पर कई लोग लिख चुके हैं। ऐसा ही एक लेख स्वामीनाथन एस अंकलेसरिया अय्यर ने लिखा है। वह ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ और ‘द इकोनॉमिक टाइम्स ‘के लिए अक्सर लिखते रहते हैं। बहुत कम लोग ये जानते हैं कि वह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर के बड़े भाई हैं। अय्यर ने एक लेख लिखा है- ‘How Hindenburg may have saved Adani from self-destruction’
अय्यर ने 2006 में गौतम अदाणी के स्वामित्व वाले मुंद्रा पोर्ट के दौरे के जिक्र के साथ इस लेख की शुरुआत की है। उनका दावा है कि गुजरात की नई बंदरगाह आधारित विकास रणनीति पर एक रिपोर्ट पर रिसर्च के लिए मुंद्रा बंदरगाह पहुंचने पर वह इसके उच्च स्तर के स्वचालन से बेहद प्रभावित हुए। कांग्रेस पार्टी के मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल ने 1990 के दशक की शुरुआत में बंदरगाह आधारित विकास रणनीति पेश की और भाजपा की बाद की सरकारों ने इसे विस्तार दिया।
अदाणी पोर्ट्स ने हमेशा किसी भी जहाज के लिए वित्तीय मुआवजा प्रदान किया है जिसे समय पर डॉक या डिस्चार्ज करने की अनुमति नहीं दी गई थी। वह वाकई अनूठा था। अय्यर के अनुसार, “ऐसा प्रतीत होता था कि मुंद्रा दूसरा ग्रह है। मैंने 1990 में बंबई में काम करने के दौरान जहाजों को बंदरगाह में प्रवेश के लिए 20 दिनों तक इंतजार करते देखा था।”
अदाणी के फर्मों पर हिंडनबर्ग जांच में बड़े पैमाने पर मूल्य निर्धारण और धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया है। अय्यर ने अपने लेख में एक अलग लेकिन इससे संबंधित मुद्दे पर बात की है। अदाणी के आलोचक इस बात का दावा करते हैं कि उन्होंने अपनी प्रतिभा के बजाय राजनीतिक पक्षपात और प्रभाव के जरिए अपना साम्राज्य खड़ा किया है। हालांकि, अय्यर का दावा है कि वह इस स्पष्टीकरण को पूरी तरह से खारिज करते हैं।
अय्यर का मानना है कि असाधारण व्यावसायिक कौशल के बिना मामूली शुरुआत से 20 वर्षों में वैश्विक स्तर के (अब अदाणी सूची में नीचे है) तीसरे स्थान पर पहुंच पाना मुश्किल है। अदाणी पर कथित रूप से आरोप है कि उन्होंने बीजेपी की मेहरबानी से बंदरगाह, माइन्स, हवाई अड्डों और ट्रांसमिशन लाइनें हासिल कीं। हालांकि, यह गौर करने वाली बात है कि अदाणी को बिना ट्रेन कनेक्शन के कच्छ के रेगिस्तान में छोटा बदरगाह चलाने की अनुमति दी गई। लेकिन, यह मरुस्थलीय क्षेत्र बड़े बंदरगाह के तौर पर विकसित किया जा सकता है।कई नीलामियों में अदाणी ने दर्जनों लोकेशंस पर जेटी और बंदरगाहों के लिए दुनिया की दिग्गज कंपनियों को बोलियों में मात दी।
प्रतिस्पर्धी बोलियों में, अदाणी ने जेटी और बंदरगाहों का टेंडर हासिल करने के लिए मर्सक और दुबई वर्ल्ड जैसे अंतरराष्ट्रीय दिग्गजों को हराया। आज की तारीख में अदाणी भारत में तकरीबन 25% माल ढुलाई का प्रबंधन करते हैं। जिससे वह देश में अब तक के सबसे बेहतर बंदरगाह संचालक बन गए हैं। लिहाजा, वह अब एक राष्ट्रीय चैंपियन की तरह हैं। हो सकता है कि इजराइल और श्रीलंका में महत्वपूर्ण जेटी और बंदरगाह के लिए भारत सरकार उनकी मदद कर रही हो, लेकिन विरोधी इसे एहसान बताते हैं। सवाल ये भी है कि जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में अरबों डॉलर लगाना राजनीतिक रूप से पक्षपात कब से हो गया?
अदाणी श्रीलंका टर्मिनल (Adani Sri Lanka Terminal) पर 750 मिलियन डॉलर खर्च करेंगे, जबकि हाइफा पोर्ट 1।18 बिलियन डॉलर खर्च करेगा। मगर सच्चाई ये है कि अगर यह प्रॉजेक्ट किसी को थाली में परोस कर भी दिया जाए तो कोई भी भारतीय प्रतिद्वंद्वी इतना बड़ा जोखिम उठाने को तैयार नहीं होगा। कुल मिलाकर अदाणी आज अपनी सिर्फ क्षमताओं की वजह से ही एक सफल बिजनसमैन से ज्यादा की भूमिका में हैं।
मुंद्रा के लॉजिस्टिक्स (Mundra’s Logistics) में कंपनी के निवेश की बदौलत रेगिस्तान में एक औद्योगिक क्लस्टर स्थापित किया गया है। वहां दुनिया में सबसे बड़ी स्वचालित कोल हैंडलिंग की सुविधा है। 2017 मॉर्गन स्टेनली विश्लेषण (Morgan Stanley analysis) के अनुसार, अदाणी पोर्ट्स और स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन का दुनिया भर की सभी पोर्ट कंपनियों में शीर्ष 25 में स्थान है।
भारत में कारपोरेट की सफलता के लिए मैन्युफैक्चरिंग और राजनीति दोनों का प्रभावी प्रबंधन जरूरी है। हर व्यापारी राजनेताओं का मित्र होता है। लेकिन, यह सफलता की गारंटी नहीं है। राहुल गांधी अक्सर अनिल अंबानी पर डिफेंस कॉन्ट्रैक्ट्स से 30,000 करोड़ बनाने का आरोप लगाते हैं। बहरहाल, वह इसमें कामयाब नहीं हो सके।
धीरूभाई का उदाहरण अहम
स्वामीनाथन अय्यर को धीरूभाई अंबानी और अदाणी की पूरी यात्रा में कई समानताएं नजर आती हैं। धीरूभाई पर अदाणी की तरह ही राजनीतिक धोखाधड़ी और हेरफेर का आरोप लगाया था। लेकिन अन्य व्यवसायों ने राजनेताओं को भी आकर्षित किया। धीरूभाई जैसे नौसिखिए को स्थापित दिग्गजों को उन्हीं के खेल में हराने के लिए जबरदस्त प्रतिभा की जरूरत थी। अदाणी भी इसी तरह के उदाहरण में फिट बैठते हैं।
धीरूभाई जोड़तोड़ में माहिर थे। लाइसेंस-परमिट राज के दौरान हेरफेर अपरिहार्य था। लेकिन अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के बाद उन्होंने दुनिया में सबसे बड़ी एक्पोर्ट ओरिएंटेड ऑयल रिफाइनरी विकसित की। उन्होंने इसमें ऑपरेटिंग मार्जिन में सिंगापुर की दिग्गज रिफाइनरियों को भी पीछे छोड़ दिया और अपने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने कौशल का लोहा मनवाया। उन्होंने अब तक का सबसे किफायती टेलीफोन नेटवर्क भी विकसित किया। जो लोग केवल उनके हेरफेर पर ध्यान देते हैं, उन असाधारण क्षमताओं को भूल जाते हैं जिन्होंने उन्हें एक ऐतिहासिक टाइटन और सब कुछ बना दिया। अदाणी भी कुछ ऐसे ही कदम उठाते दिखाई दे रहे हैं।
अय्यर उन आलोचकों से असहमत हैं जो इस बात का दावा करते हैं कि अदाणी मुख्य रूप से इंफ्रास्ट्रक्चर में कारोबार करते हैं, जहां वास्तविक प्रतिभा की तुलना में सरकार की अनुकूलता अधिक महत्वपूर्ण है। 2003-2008 के इंफ्रास्ट्रक्चर बूम ने उन सैकड़ों नए टाइकून को आकर्षित किया, जिनका पॉलिटिकल कनेक्शन था, फिर भी राजनीतिक संरक्षक होने के बावजूद उनमें से कई को मुश्किलों का सामना करना पड़ा। कई नाकाम हो गए, जिससे बैंकों पर भारी देनदारियां आ गईं जिनका भुगतान किया जाना अभी बाकी था। इंफ्रास्ट्रक्चर की सफलता के लिए सिर्फ राजनीतिक सहयोगी ही नहीं बल्कि प्रतिभा की भी जरूरत होती है। Growth in Gautam Adani’s business
अपने निष्कर्ष पर, अय्यर ज्यादा सावधानी बरतने की बात करते हैं। उनका दावा है कि अदाणी लोन पर ली गई धनराशि का इस्तेमाल करके और अधिक बोलियां लगाते हुए कंपनियों का अधिग्रहण कर रहे हैं और तेज गति से अपने कारोबार में विविधता ला रहे हैं। इससे तेजी से विस्तार तो हो सकता है लेकिन इसमें जोखिम की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं जिनमें बड़ी-बड़ी कंपनियों ने इस माध्यम से काफी विस्तार किया। लेकिन, आखिरकार क्षणिक सफलता के बाद उन्हें असफलता हाथ लगी। (जैसे जैक वेल्च के तहत जनरल इलेक्ट्रिक)।
इसलिए अय्यर का मानना है कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट से अदाणी को बहुत फायदा हुआ होगा। यह उनकी विकास दर और विविधीकरण की रफ्तार को धीमा कर देगा और उसके फाइनेंसरों को आगे बढ़ने के लिए अधिक सतर्क बना देगा। अदाणी के फायदे के लिए यह उस वित्तीय अनुशासन को लेकर आएगा जिसकी उन्हें सख्त जरूरत है। अय्यर का दावा है कि कही न कहीं हिंडनबर्ग ने उन्हें खुद को तबाह करने से रोका है।
अय्यर की थ्योरी का विरोध करना चुनौतीपूर्ण है। लेकिन, अय्यर की कहानी का सबक यह है कि अदाणी की कहानी कोई धोखा नहीं है। यह शायद ही खुले राजनीतिक पक्षपात की कहानी है। यह कहानी 1990 के दशक की शुरुआत में शुरू होती है, जब कांग्रेस केंद्र और गुजरात दोनों जगह सरकार में थी। सभी बिजनेसमैन राजनेताओं के साथ मेलजोल रखते हैं। लेकिन यह मान लेना सही नहीं है कि किसी की कॉर्पोरेट सफलता पूरी तरह से राजनीतिक पक्षपात का नतीजा है। अदाणी ने धीरूभाई की तरह अपनी व्यावसायिक समझ और प्रोजेक्ट मैनेजमेंट स्किल की बदौलत अब तक इसे बनाए रखा है। हो सकता है कि अदाणी ने बहुत तेजी से आगे बढ़ने की जल्दबाजी में बहुत ज्यादा लोन ले लिया हो, लेकिन उन पर कर्ज के नीचे उच्चतम स्तर की संपत्तियां हैं। अय्यर की तरह, मुझे लगता है कि अदाणी हिंडनबर्ग के चैप्टर से और भी मजबूत होकर निकलेंगे। Growth in Gautam Adani’s business