Video : आए दिन भारत में रहने वाले जैन समुदाय के लोग भौतिक सुखों को त्यागकर जैन भिक्षु बन रहे हैं। करोड़ों रुपए की संपत्ति छोडकर वह दो सफेद कपड़ा, भिक्षा मांगने के लिए एक कटोरा लेकर घर से निकल पड़ते हैं। वह दीक्षा लेने के बाद नंगे पैर चलते है, भिक्षा मांग कर ही वह खाना खाते हैं। जो उन्हें भिक्षा में मिलता है उसके अलावा कुछ नहीं खाते। वह आधुनिक तकनीक और एसी अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट्स का उपयोग नहीं करते हैं। एक ऐसा ही मामला इन दिनों सोशल मीडिया में जमकर वायरल हो रहा है जहां एक बड़े कारोबारी की पत्नी और 11 साल के बेटे ने करोड़ों रुपए का भौतिक सुख-सुविधाओं का त्याग कर दिया है। वह दीक्षा लेने के बाद जैन भिक्षु बन गए।
भारत में रहने वाले जैन समुदाय के सैकड़ों लोग भिक्षु बनकर भौतिक दुनिया त्याग रहे हैं. वो दीक्षा लेने के बाद नंगे पैर चलते हैं, वही खाते हैं जो भिक्षा के रूप में मिलता है और आधुनिक तकनीक जैसे एयर कंडीशनर और अन्य इलेक्ट्रोनिक गैजेट्स का उपयोग नहीं करते. हाल में बिजनेसमैन की पत्नी 30 साल की स्वीटी ने भी ऐशो आराम की जिंदगी छोड़ दीक्षा ले ली. उनके पति मनीष कर्नाटक में बिजनेसमैन हैं. उनके साथ उनका 11 साल का बेटा हृदन भी भिक्षु बना है. दीक्षा लेने के बाद इन्हें नए नाम मिले. स्वीटी को भावशुधी रेखा श्री जी और बेटे को हितैषी रतन विजय जी नाम मिला है. मां बेटे संन्यास का प्रतिज्ञा लेने के बाद वे जो अपने सारे पारिवारिक रिश्ते तोड़ने होंगे. उन्हें कोई भी ‘भौतिकवादी वस्तु’ रखने की अनुमति नहीं होगी. फिर वे पूरे भारत में नंगे पैर चलेंगे और केवल भिक्षा पर जीवित रहेंगे.Video
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इनके एक रिश्तेदार ने बताया कि भावशुद्धि रेखा श्री जी जब गर्भवती थीं, तभी उन्होंने भिक्षु बनने का फैसला लिया था. उन्होंने तब ये भी सोच लिया था कि उनका बच्चा उनके ही नक्शे कदम पर चलेगा और जैन भिक्षु बनेगा. दीक्षा लेने के बाद भिक्षु को केवल दो सफेद वस्त्र, भिक्षा के लिए एक कटोरा और एक “रजोहरण” रखने की अनुमति होगी(जैन धर्म में रजोहरण की प्राप्ति का मतलब होता है कि संन्यास के लिये गुरु की रज़ामंदी). उनके पास एक सफेद झाड़ू होगा ताकि जैन भिक्षु बैठने से पहले या फिर सोने से पहले उस क्षेत्र से सभी सूक्ष्म कीटों को दूर कर सके ताकि किसी भी जीव की मौत ना हो। यह अहिंसा के मार्ग का प्रतीक है, जिसका पालन इस समुदाय के लोग करते हैं. Video