सुरंग में फंसे लोगों को निकालने के लिए युद्धस्तर पर अभियान, मृतक संख्या 28 हुई
देहरादून,9 फरवरी–“हाइड्रो-पॉवर परियोजनाएँ आर्थिक रूप से ज़्यादा ख़र्चीला सौदा है. ऐसी परियोजनाओं से जो बिजली बनती है, उसकी लागत 6 रुपए प्रति यूनिट पड़ती है. जबकि विंड और सोलर एनर्जी से बिजली पैदा करने में 3 रुपए प्रति यूनिट का ख़र्चा आता है. तो फिर क्यों हाइड्रो-पॉवर परियोजनाओं को एक के बाद एक मंजूरी दी जा रही है? वो भी तब, जब 7 साल पहले ऐसा ही भयानक मंज़र उत्तराखंड में एक बार पहले भी देख चुके हैं.”
उत्तराखंड के चमोली जिले में ऋषिगंगा घाटी में आई बाढ़ में मरने वालों की संख्या मंगलवार को 28 तक पहुंच गई जबकि एनटीपीसी की क्षतिग्रस्त तपोवन-विष्णुगाड जलविद्युत परियोजना की सुरंग में फंसे 30-35 लोगों को बाहर निकालने के लिए सेना, राष्ट्रीय आपदा मोचन बल(एनडीआरएफ) , भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आइटीबीपी)और राज्य आपदा प्रतिवादन बल (एसडीआरएफ)का संयुक्त बचाव और राहत अभियान युद्धस्तर पर जारी रहा ।
ऋषिगंगा घाटी के रैणी क्षेत्र में ग्लेशियर टूटने से ऋषिगंगा और धौलीगंगा नदियों में रविवार को अचानक आई बाढ़ से पहाड़ी क्षेत्र में बड़ी तबाही हुई है। कई लोग लापता हो गए, जिन्हें ढूंढने की कोशिश की जा रही है। प्रशासन और एजेंसियों को एक के बाद एक शव मिल रहे हैं। 200 जिंदगियां दांव पर हैं और बीतते हर मिनट के साथ ही उनके बचने की उम्मीद भी कम होती जा रही है। हालांकि, इन सबके बावजूद सेना, आईटीबीपी और राज्य प्रशासन लगातार सर्च ऑपरेशन करके लोगों को जल्द सकुशल निकालने में लगा हुआ है।
रविवार को ऋषिगंगा घाटी में पहाड़ से गिरी लाखों मीट्रिक टन बर्फ के कारण ऋषिगंगा और धौलीगंगा नदियों में अचानक आई बाढ में अभी करीब 170 अन्य लोग लापता हैं ।एसडीआरएफ के अधिकारियों ने बताया कि अभी तक 28 व्यक्तियों के शव विभिन्न एजेंसियों द्वारा अलग—अलग स्थानों से बरामद हो चुके हैं । एसडीआरएफ ने कहा कि उनके तलाशी दस्ते रैंणी, तपोवन, जोशीमठ, रतूडा, गौचर, कर्णप्रयाग, रूद्रप्रयाग क्षेत्रों में अलकनंदा नदी में शवों की तलाश कर रहे हैं ।
घटना पर नजर बनाए हुए साइंटिस्ट्स ने सैटलाइट तस्वीरों का अध्ययन किया है। रॉयल कनैडियल जियोग्रैफिकल सोसायटी के डॉ डैन शूगर ने प्लैनेट लैब्स की सैटलाइट इमेजेज में एक खास चीज नोट की। इसके मुताबिक, रैंणी गांव के पास एक पहाड़ पर जमी बर्फ का एक बड़ा हिस्सा रविवार को गिर गया और शायद वही फ्लैश फ्लड की वजह बना। जो हिमस्खलन हुआ उससे नदियों में करीब 3 से 4 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी पहुंचा।
ऋषिगंगा और तपोवन बिजली परियोजनाओं में काम करने वाले और आसपास रहने वाले करीब आधा दर्जन लोग आपदा में घायल हुए हैं ।तपोवन में संवाददाताओं से बातचीत करते हुए मुख्यमंत्री रावत ने कहा कि इस समय प्राथमिकता सुरंग के अंदर फंसे लोगों तक पहुंचने और ज्यादा से ज्यादा लोगों का जीवन बचाना है । एनटीपीसी की सुरंग में बचाव और राहत कार्यों के संचालन में भारी मलबे तथा उसके घुमावदार होने के कारण आ रही मुश्किलों के बावजूद उसका आधे से ज्यादा रास्ता अब तक साफ किया जा चुका है और अधिकारियों को उम्मीद है कि जल्द ही वहां फंसे लोगों से संपर्क हो सकेगा ।
भारत-चीन सरहद के मलारी आदि इलाकों को मुख्य धारा से जोड़ने वाला सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) द्वारा निर्मित पक्का सीसी पुल भी इस ऋषि गंगा में उफान की भेंट चढ़ गया है। जिस कारण से मलारी नीति बार्डर में सुरक्षा में लगी सेना एवं भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) मुख्य धारा से कट गई है। सेना के अतिरिक्त घाटी के छह गांवों की आवाजाही भी इस वाहन पुल के टूटने से ठप हो गई है। पुल के बहने की खबर मिलते ही बीआरओ की टीम ने मेजर परसुराम के नेतृत्व में मौके का निरीक्षण किया। उन्होंने बताया कि यह पुल कुछ वर्ष पहले ही बना था और लगभग 17 मीटर लंबा था। बताया कि नदी से अत्यधिक उंचाई पर होने के बावजूद यह पुल बह गया है। उन्होंने कहा कि सेना व ग्रामीणों की आवाजाही को सुचारू करने के लिए जल्द एक वैली पुल यहां पर बनाया जायेगा।