जबलपुर हाईकोर्ट (Jabalpur High Court) के चीफ जस्टिस आरवी मलिथम और जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की डिवीजन बेंच ने छतरपुर जिले की बकस्वाहा जंगल में प्रस्तावित हीरा खदान परियोजना पर महत्वपूर्ण फैसला देते हुए रोक लगा दी है। डिवीजन बेंच ने निर्देश हाई कोर्ट की अनुमति के बिना बक्सवाहा जंगल में किसी भी प्रकार की खनन संबंधी कार्यवाही ना की जाए। डबल बेंच ने देखा कि पाषाण युग के रॉक पेंटिंग और चंदेल युग की मूर्तियों को इस खनन से नुकसान आ सकता है. स्टे ऑर्डर जारी करते हुए हाईकोर्ट की बेंच ने स्पष्ट किया कि कोई भी खनन गतिविधि उक्त क्षेत्र में उसके फैसले के बाद ही होगी.
हाईकोर्ट ने पुरातत्व विभाग सहित केंद्र एवं राज्य सरकार को जवाब प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया हैसुनवाई जबलपुर स्थित एक गैर-लाभकारी संगठन, नागरिक उपभोक्ता मंच द्वारा दायर जनहित याचिका पर की गई. इस याचिका में खनन कार्यों पर रोक लगाने की मांग की गई थी. याचिका में कहा गया है कि आदित्य बिड़ला ग्रुप की एस्सेल माइनिंग कंपनी को छतरपुर जिले के बक्सवाहा के जंगल में 382 हेक्टेयर जमीन पर हीरा खनन के लिए लिस्ट दी गई है।भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की रिपोर्ट का भी हवाला दिया गया, जिसने जंगल में 25 हजार वर्ष पुरानी पाषाण युग के रॉक पेंटिंग, चंदेल और कल्चुरी युग की मूर्तियां और स्तंभ सहित अन्य ऐतिहासिक संरचनाओं की उपस्थिति की पुष्टि की थी.
खनन के फैसले की हुई थी आलोचना
एक प्राइवेट खनन कंपनी को वन क्षेत्र में 364 हेक्टेयर भूमि पर हीरा खनन के अनुबंध की पेशकश की गई थी. इस निर्णय के बाद से ही राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना हुई हो गई थी. दिल्ली निवासी एवं यूनाइटेड नेशन के पूर्व कंसलटेंट रमित बसु की ओर से दायर याचिका में कहा गया कि बक्सवाहा जंगल नौरादेही और पन्ना टाइगर रिजर्व के बीच का टाइगर काॅरिडोर हैं। बक्सवाहा जंगल में हीरा खनन हुआ तो टाइगर कॉरिडोर समाप्त हो जाएगा अधिवक्ता अंशुमन सिंह ने तर्क दिया कि टाइगर कॉरिडोर मैं खनन के लिए नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी की अनुमति नहीं ली गई है साथ ही इससे लगभग 8,000 स्थानीय निवासियों का जीवन भी दांव पर लगा है. ऐसा इसलिए क्योंकि ये निवासी पूरी तरह से जंगलों पर निर्भर हैं.