सीधी — पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजयसिंह ने आरोप लगाया है कि हर बार की तरह इस वर्ष भी मध्यप्रदेश के गरीबों को बांटे जाने वाले चावल का गोरखधंधा सरकार की मिलीभगत से जोर शोर से चल रहा है। चावल मिलों को दी जाने वाली समर्थन मूल्य पर खरीदी गई धान को मिलर द्वारा ऊंची कीमत में दूसरे राज्यों में भेजा जा रहा है। मिलों द्वारा इसके बदले में पड़ोसी प्रदेशों से घटिया चावल सस्ते दामों में खरीद कर वापस जमा किया जा रहा है जिसे राशन की दुकानों से बांटा जाएगा। यह सुनियोजित घोटाला भाजपा सरकार और चावल मिल मालिकों की सांठगांठ से चल रहा है उन्होंने कहा कि इस पर तत्काल रोक लगाईं जाए। सिंह ने मुख्यमंत्री शिवराजसिंह से उच्चस्तरीय जांच की मांग की है।
अजय सिंह ने कहा कि पिछले साल भी मैंने यह मामला उजागर करते हुए कहा था कि भेड़- बकरियों, गधों- घोड़ों और मुर्गियों को खिलाया जाने वाला घटिया चावल गरीब जनता को बांटा जा रहा है लेकिन शिवराज सरकार के कान में जूं नहीं रेंगी। जनता के साथ किये गये इस खिलवाड़ की राष्ट्रीय स्तर पर बदनामी हुई थी। इस साल फिर वही काम किया जा रहा है और शासन को करोड़ों की चपत लगाई जा रही है| सिंह ने कहा कि ताजा उदाहरण अनूपपुर, कटनी और डिंडोरी जिलों से आया है जहां कई राइस मिलर्स अपनी क्षमता से अधिक घटिया चावल गरीबों को बांटने के लिए सरकार को दे रहे हैं। इनमें कई मिलें बंद है या उनका बिजली कनेक्शन कटा है। फिर उनके पास कहाँ से चावल आ रहा है। कटनी में फर्जी किसानों के नाम पर आठ करोड़ से अधिक की हजारों टन धान केवल कागजों में खरीद ली गई। मिलर्स के द्वारा डिलीवरी भी स्वीकार कर ली गई और भुगतान प्रक्रिया भी शुरू हो गई। अनूपपुर में सात करोड़ से अधिक का चावल खुर्द बुर्द किया जाने का मामला सामने आया है। यही हाल डिंडोरी जिले के हैं जहाँ से अच्छी धान महाराष्ट्र भेजी जा रही है और उत्तरप्रदेश से घटिया चावल खरीद कर नागरिक आपूर्ति निगम में जमा किया जा रहा है जिसे जनता को बांटा जाएगा।
अजय सिंह ने कहा कि यह मामला केवल शहडोल, कटनी या डिंडोरी तक ही सीमित नहीं है बल्कि पूरे प्रदेश में यही हो रहा है। सरकार हर साल 50 लाख क्विंटल से अधिक धान का उपार्जन करती है। यह अच्छी धान शहडोल, कटनी, डिंडोरी, मंडला, बालाघाट, सिवनी आदि जिलों की मिलों में चावल निकालने के लिए भेजी जाती है। मिलों से प्राप्त चावल को गरीबों को बांटा जाता है।लेकिन सरकार की शह पर अच्छा चावल तो ऊंची कीमत पर बेच दिया जाता है और यू.पी. बिहार आदि से रिसाईकिल्ड किया हुआ पशुओं के खाने वाला सस्ता चावल खरीद कर राशन की दुकानों में सप्लाई कर दिया जाता है।