MP News सिंगरौली। भारतीय जनता पार्टी ने अपने कब्जे वाले तीनों विधानसभा में जहां एक बार फिर जीत को दोहराने के लिए जातीय समीकरण को देखते हुए टिकट बटवारा किया है तो वहीं कांग्रेस भी जाति समीकरण से ऊपर नहीं उठ पाई है। बीजेपी कांग्रेस की जाती ध्रुवीकरण की राजनीति को इस बार सामान्य वर्ग का मतदाता विकल्प के रूप में देख रहा है। दोनों दल के लिए योग्यता नहीं बल्कि जातीय समीकरण के अनुरुप टिकट देती हैं। लेकिन इस बार सिंगरौली अनारक्षित सीट पर भाजपा और कांग्रेस का दाव उल्टा पड़ता नजर आ रहा है, इस बार दोनों ही पार्टियों ने सिंगरौली विधानसभा सीट से साहू समाज से प्रत्याशी बनाकर अन्य दलों के लिए अवसर खोल दिए हैं। हालांकि इस बार सामान्य वर्ग का मतदाता भाजपा और कांग्रेस के विकल्प की तलाश में है।
बता दें कि सिंगरौली विधानसभा सीट बने 15 साल हो गए हैं। प्रदेश भर में सबसे ज्यादा राजस्व देने वाले जिले में अति पिछड़ा पन का कलंक लग चुका है। यहां कि आबो हवा, पानी शिक्षा स्वास्थ्य जैसी कई बड़ी समस्याएं हैं। यहां की हवा जहरीली हो चुकी है पानी में पारा होने के चलते लोगों की हड्डी टेढ़ी हो रही है। लेकिन चुनाव के समय यहां मुद्दे गौड़ हो जाते हैं और पूरा चुनाव जाति आधारित हो जाता है। यही वजह है कि इस अनारक्षित सीट पर भाजपा और कांग्रेस ओबीसी वर्ग से ही अपना प्रत्याशी बनाते आ रहे हैं। इसके पीछे तर्क दिया जाता है कि भाजपा और कांग्रेस ने जब कभी भी महापौर और विधानसभा सीट पर सामान्य वर्ग के उम्मीदवार को अपना प्रत्याशी बनाया तो उन्हें हार का सामना करना पड़ा। राजनीतिक लोगों की माने तो सिंगरौली विधानसभा सीट में बहुसंख्यक मतदाता साहू समाज से आते हैं और यह समाज जब अन्य जाति के समाज के लोगों को टिकट मिलता है तो साहू समाज के लोग जाति ध्रुवीकरण करते हुए चुनाव जीत लेते हैं। लेकिन इस बार भाजपा और कांग्रेस ने साहू समाज से ही प्रत्याशी बनाकर साहू समाज के मतदाताओं को दुविधा में डाल दिया है। अब साहू समाज का मतदाता उहापोह की स्थिति में है। कि आखिर किसे वोट दिया जाए। तो वही सामान्य वर्ग का मतदाता इस चुनाव में निर्णायक भूमिका में है। वह जिस पार्टी के साथ अपना समर्थन देगा। उसकी विजय निश्चित है हालांकि अभी तक सामान्य वर्ग का मतदाता का ध्रुवीकरण दिखता नजर नहीं आ रहा।
क्षत्रिय और साहू समाज में 36 का आंकड़ा ?
चर्चा है और नतीजे बताते हैं जिले में करीब तीन दशक से क्षत्रिय और साहू समाज में 36 का आंकड़ा रहा है। हालांकि नतीजे भी कुछ इसी चर्चा को बया भी कर रहे हैं। साल 2009 में क्षत्रिय और साहू समाज महापौर चुनाव में आमने-सामने थे। इस चुनाव में भाजपा से कांत शीर्ष देव सिंह कांग्रेस से अरविंद सिंह चंदेल और बसपा से रेनू शाह चुनावी रण में अपना भाग्य आजमा रहे थे। वर्चस्व के इस चुनाव में क्षत्रिय समाज की हार हुई और बसपा की रेनू शाह महापौर बनी। वही साल 2013 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से मध्य प्रदेश के कद्दावर नेता अजय सिंह राहुल के जीजा व्हीपी सिंह राजा बाबा चुनाव मैदान में थे उस दौरान कांग्रेस प्रत्याशी रेनू शाह ने बसपा से ताल ठोकते हुए चुनावी मैदान में आ गई। नतीजा इस चुनाव में राजा बाबा को करारी शिकस्त मिली और भाजपा से राम लल्लू विधायक बने। चर्चा है कि दो दशक से क्षत्रिय और साहू समाज के बीच जब भी वर्चस्व की लड़ाई हुई वहां क्षत्रिय समाज की हर बार हार हुई। कहा यह भी जाता है कि साल 2009 में जब अजय सिंह राहुल की बहन वीणा सिंह ने कांग्रेस से बगावत करते हुए लोकसभा चुनाव लड़ा था उस दौरान भी रेनू शाह ने उनका समर्थन नहीं किया था और उनके पति अशोक साह बीएसपी से अपना दावा ठोक दिया था हालांकि इस चुनाव में वह दोनों ही हार गए थे। सियासत की अदावत इन दोनों समाज में हर चुनाव में देखने को मिलता है। इन हालातो में यह कहे की क्षत्रिय और साहू समाज में 36 का आंकड़ा है तो गलत बिल्कुल नहीं होगा। MP News
निर्णायक माना जाता है ब्राह्मण का वोट
क्षत्रिय और साहू समाज के राजनीतिक अदावत के बीच हर चुनाव में ब्राह्मण वोट निर्णायक रहा है। हालांकि क्षत्रिय समाज जब भी चुनाव लड़ा उस दौरान इलाके की पिछड़ी जाति एकजुट हुई। साहू समाज के नेताओं का प्रयास लड़ाई को अगड़ा बनाम पिछड़ा बनने की रही है। और सभी चुनावों में क्षत्रिय और ब्राह्मण समाज की हार हुई है। वैसे तो सिंगरौली में ब्राह्मण वोटरों का दबदबा रहा है। लेकिन एक दशक से ज्यादा समय से ब्राह्मण समाज से भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों ने ही दूरी बना ली या यू कहे की जाति समीकरण और ध्रुवीकरण पिछड़ा वर्ग में ज्यादा होने के चलते ब्राह्मणों को नेतृत्व करने का मौका पार्टियों ने नहीं दिया। माना जाता है कि ब्राह्मण समाज एक नहीं होता इसीलिए पार्टियों भी इस समाज को संगठन में वह जिम्मेदारी नहीं देते जो चुनकर आते हैं। MP News