Singrauli News सिंगरौली : राजनीति की भट्टी में धर्म और जाति को पिघलाया जाना कोई नई बात नहीं है, सत्तापक्ष, विपक्ष सहित क्षेत्रीय दल जाति का जहर फैलाते हैं और जातीय समीकरण को देखकर टिकट का बटवारा करते आ रहे हैं। करें भी क्यों ना बिना जातीय समीकरण के चुनाव जीतना अब दलों को मुश्किल नहीं बल्कि नामुमकिन लगे लगा है। कमोबेश स्थिति सिंगरौली जिले में भी देखने को मिलती है। सिंगरौली विधानसभा सीट अस्तित्व में आया तब से लेकर अब तक यह सीट भले ही अनारक्षित सीट रही लेकिन यहां ओबीसी ही प्रत्याशी जीते हैं। दलों से सामान्य वर्ग के स्थानीय नेताओं ने अनारक्षित सीट होने पर टिकट का जुगाड़ कर भी लिया तो उन्हें यहां हार का सामना करना पड़ा। नतीजा सभी दल इस अनारक्षित सीट में अब ओबीसी प्रत्याशी को अपना कैंडिडेट बना रहे हैं।
बता दे की ऊर्जाधानी के नाम से विख्यात सिंगरौली जिला मध्य प्रदेश का सबसे ज्यादा राजस्व देने वाला जिला है। जिले में सत्ता पक्ष और विपक्ष की यहां पैनी नजर रहती है। यही वजह है कि मुख्यमंत्री इस जिले में अपनी सभा और रैली करना बिल्कुल नहीं भूलते। कई पावर प्रोजेक्ट होने के चलते यहां की अबोहवा जहरीली हो चुकी है, इस जिले में अति पिछड़ापन का भी कलंक लग चुका है। यह अलग बात है कि चुनाव में स्थानीय मुद्दे गौण हो जाते हैं और पूरा चुनाव जाति पर आधारित हो जाता है। वहीं संपन्न जिले के डीएमएफ फंड का एक बड़ा हिस्सा अन्य जिलों में खर्च होने के चलते स्थानीय लोगों में भाजपा को लेकर नाराजगी है। इस बार भाजपा को एंटी इनकंबेंसी का भी सामना करना पड़ रहा है। चर्चा है कि भाजपा ने यहां के लोगों के हक में डाका डाला है। यही वजह है कि इस बार भाजपा के लिए जीत की राह आसान बिल्कुल नहीं होगी। जाति आधार पर सिंगरौली में महापौर और विधानसभा चुनाव में हर बार ओबीसी प्रत्याशी जीते हैं। यही वजह है कि भाजपा कांग्रेस और बसपा हर बार ओबीसी समाज से अपना उम्मीदवार उतारने हैं। चर्चा है कि जो बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय, कहने का आशय है कि जिस जाति बीज को जिन लोगों ने बोया है अब वही काटेंगे। वहीं भाजपा कांग्रेस और बसपा से नाराज मतदाता भी विकल्प की तलाश में है। Singrauli News
स्थानीय मुद्दों पर नहीं जाति पर होती है राजनीति
ज़िले में कई स्थानीय बड़े मुद्दे हैं लेकिन सभी चुनाव जाति आधारित पर लड़े जाते हैं, चुनावी नतीजे कुछ इसी तरफ इशारा करते हैं, यही वजह है कि इस अनारक्षित सीट पर भाजपा और कांग्रेस ओबीसी वर्ग से ही अपना प्रत्याशी बनाते आ रहे हैं। महापौर और विधानसभा सीट पर सामान्य वर्ग के उम्मीदवार जब चुनाव लड़े तो उन्हें हार का सामना करना पड़ा। राजनीतिक लोगों की माने तो सिंगरौली विधानसभा सीट में बहुसंख्यक मतदाता साहू समाज से आते हैं और यह समाज जब अन्य जाति के समाज के लोगों को टिकट मिलता है तो साहू समाज के नेता जाति ध्रुवीकरण करते हुए चुनाव जीत लेते हैं। लेकिन इस बार भाजपा और कांग्रेस ने साहू समाज से ही प्रत्याशी बनाकर साहू समाज के मतदाताओं को दुविधा में डाल दिया है। अब साहू समाज का मतदाता उहापोह की स्थिति में है। कि आखिर किसे वोट दिया जाए। तो वही सामान्य वर्ग का मतदाता इस चुनाव में निर्णायक भूमिका में है। वह जिस पार्टी को अपना समर्थन देगा उसकी विजय निश्चित है हालांकि अभी तक सामान्य वर्ग का मतदाता का ध्रुवीकरण दिखता नजर नहीं आ रहा। Singrauli News
भाजपा कांग्रेस और बसपा में खलबली
बीजेपी कांग्रेस और बसपा ने जिले के जातीय समीकरण को देखते हुए ओबीसी समाज से अपना प्रत्याशी उतारा है लेकिन सामान्य वर्ग से आप पार्टी महापौर रानी अग्रवाल के चुनाव मैदान में उतरने के बाद यहां की राजनीतिक फिजा गरमा गई है। इस बार सभी दलों का दांव उल्टा पड़ता नजर आ रहा है। दरअसल इस बार तीनों ही पार्टियों ने साहू समाज से प्रत्याशी बनाकर अन्य दलों के लिए अवसर खोल दिए हैं। चर्चा है कि इस बार सामान्य वर्ग का मतदाता भाजपा, कांग्रेस और बसपा के विकल्प की तलाश में है। इसके पीछे राजनीतिक जानकारों का मानना है कि साहू समाज ने एक विधानसभा चुनाव में पंडित राम अशोक शर्मा को जबकि महापौर चुनाव में अरविंद सिंह चंदेल और कांत शीर्ष देव सिंह को हराया था। इसके बाद से यह सीट अनारक्षित होते हुए भी ओबीसी सीट हो गई । लेकिन इस बार रानी अग्रवाल के आ जाने के बाद से ओबीसी प्रत्याशियों की धड़कनें बढ़ गई है। Singrauli News