MP- सिंगरौली जिले के मुहेर गांव वालों को आए दिन अपनी पहचान बतानी पड़ती है। अब यदि जिनके पास आधार कार्ड या फिर परिचय पत्र नहीं है तो उन्हें बैरंग वापस लौटना पड़ता है।
MP- सिंगरौली- MP के सिंगरौली जिले में एक ऐसा गांव है जहां ग्रामीणों को हर दिन अपने गांव जाने के लिए अपना आधार कार्ड दिखाना पड़ता है यदि आधार कार्ड नहीं दिखाए तो उन्हें जाने से रोक दिया जाता है जी हां यह सब MP के सिंगरौली जिले के मुहेर गांव वालों को आए दिन अपनी पहचान बतानी पड़ती है। अब यदि जिनके पास आधार कार्ड या फिर परिचय पत्र नहीं है तो उन्हें बैरंग वापस लौटना पड़ता है।
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बता दें कि MP के सिंगरौली कोयला के लिए विख्यात है. सिंगरौली जिला में पर्याप्त कोयले का भंडार है। कोयला का यह भंडार नगर निगम क्षेत्र के वार्ड क्रमांक 2 मुहेर गांव में है । गांव का करीब दो तिहाई हिस्सा कोल कंपनियों ने अधिग्रहित कर लिया लेकिन गांव का एक बड़ा रकबा में अभी भी आवादी आवाद है। यहां करीब 2 से 3 लोग अभी भी अपना जीवन यापन कर रहे हैं। वही मुहेर गांव को शहर से जोड़ने के लिए खदान क्षेत्र के बीच से ही निकलना पड़ता है एतिहात के तौर पर एनसीएल प्रबंधन ने यहां पर सीआईएसएफ फोर्स लगा के रखा है और यहां से गुजरने वाले हर एक सख्स के आधार कार्ड की चेकिंग की होती है एक पल के लिये ऐसा देखने बालो को लगता है की वह पाकिस्तान की सरहद पर कर रहा हैं. बिना परिचय पत्र के इस रास्ते से कोई नहीं निकल सकता निकलने की परमिशन दी जाती है।
खदान क्षेत्र के इस रास्ते से निकलना मौत को दावत देना जैसा ही है
MP के सिंगरौली जिले के मुहेर गावं में धूल भरे गुब्बारे के बीच ग्रामीण अपने घर से जिला मुख्यालय और जिला मुख्यालय से अपने घर पहुंचते हैं कहने के लिए तो यह शहर का रास्ता है और इस रास्ते पर पानी का छिड़काव किया जाना चाहिए लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं होता इन रास्तों पर कभी भी पानी का छिड़काव नहीं होता यहां से गुजरने वाली लो धूल भरी गुब्बार के बीच मुख्यालय और घर पहुंचते हैं इनकी सुध लेने वाले ना तो यहां का प्रशासनिक अमला है और ना ही सत्ता में बैठे नेता। हां यह जरूर है कि जब चुनाव आता है तो दावे वादी खूब किए जाते हैं लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद नेताओं को इस वार्ड की याद शायद ही आती है।
रोज बदल जाते है रास्ते
ग्रामीणों की शिकायत यह भी है कि खदान क्षेत्र के रास्ते आए दिन बदल जाते हैं ऐसे में उन्हें घर से मुख्यालय और मुख्यालय से घर पहुंचने में कई बार रास्ता तक भटक जाते हैं खदान क्षेत्र के भीतर करीब 8 से 10 किलोमीटर के रास्ते में कहीं भी लाइन वोट नहीं लगा रहता जिसके चलते ग्रामीणों को खासी परेशानी होती है तो वही इस रास्ते को शाम 7:00 बजे के बाद बंद कर दिया जाता है ऐसे में ग्रामीण मुख्यालय से शाम 7:00 बजे के पहले इस रास्ते को पार करने की भी चुनौती रहती है ग्रामीण यह भी कहते हैं कि कब उनकी जमीन कोल कंपनियों द्वारा अधिकृत हो जाए जिससे उन्हें इस समस्या से छुटकारा मिल सके।