सिंगरौली 16 मार्च। सामाजिक न्याय विभाग सिंगरौली ने भारत सरकार के डीडीआरसी के लिए बनाये गये गाईड लाईन व दिशा-निर्देश को नजरअंदाज करते हुए डीएमएफ फण्ड के 3 करोड़ रूपये भारत सरकार का उपक्रम बेसिल कंपनी को दिव्यांगों के लिए सहायक उपकरण वितरण करने का जिम्मा सौंप दिया है। ताज्जुब की बात है कि सामाजिक न्याय विभाग ने बिना टेण्डर प्रक्रिया अपनाते हुए बेसिल कंपनी पर मेहरबानी दिखाया है।
दरअसल जिले में दिव्यांगों को चिन्हित कर सहायक उपकरण नि:शुल्क वितरित कराने के लिए डिस्ट्रिक्ट मिनरल फण्ड से 3 करोड़ रूपये की मंजूरी प्रदान कर जिले के सामाजिक न्याय विभाग को यह दायित्व सौंपा गया है। लेकिन सूत्र बताते हैं कि सामाजिक न्याय विभाग सिंगरौली के अमले ने भारत सरकार के डीडीआरसी के लिए बनाये गये गाईड लाईन को नजरअंदाज कर भारत सरकार के उपक्रम एक बेसिल कंपनी पर बड़ा दरियादिली दिखाया है। सूत्र बताते हैं कि जिला दिव्यांग पुनर्वास केन्द्र को संचालित करने के लिए भारत सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देश के तहत जो भी सामग्री और उपकरण तथा अन्य सामग्री क्रय किये जायेंगे उसे भारत सरकार के द्वारा संचालित एलिम्को संस्था द्वारा ही प्रथम बरीयता देकर क्रय किया जायेगा। यदि एलिम्को खरीद, प्रदान करने की स्थिति में नहीं है तो सामान्य वित्तीय नियमों के प्रावधानों के तहत निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार डीएमटी की देखरेख में कार्यान्वयन एजेंसी द्वारा उपकरण की खरीदी की जा सकती है। परंतु ऐसा यहां नही हुआ है। जिले के जिम्मेदार अधिकारी खुद मानते हैं कि दिव्यांगों को सहायक उपकरण प्रदाय करने के लिए टेण्डर प्रक्रिया नहीं अपनायी गयी है और न ही एलिम्को व बेसिल कंपनी के दर का तुलनात्मक मिलान किया गया।
टेण्डर प्रक्रिया के बारे में जिला पंचायत के अतिरिक्त सीईओ व सामाजिक न्याय विभाग के उप संचालक अनुराग मोदी का कहना है कि बेसिल कंपनी भारत सरकार का उपक्रम है इसीलिए उसे यह जिम्मेदारी सौंपी गयी। लेकिन अब सवाल उठ रहा है कि जब भारत सरकार ने जिला दिव्यांग पुनर्वास केन्द्र को संचालित करने गाईड लाईन तैयार किया है फिर इसका पालन करने में परहेज क्यों किया गया? सूत्र तो यहां तक बताते हैं कि बेसिल कंपनी ने इंदौर के एक एनजीओ को दिव्यांग उपकरण सामग्री वितरण करने का जिम्मा दिया है जिसके ऊपर सामग्री व उपकरण की क्वालिटी व दर को लेकर आरोप, प्रत्यारोप लग रहे हैं। बावजूद इसके सामाजिक न्याय विभाग ने बेसिल कंपनी व एनजीओ पर मेहरबानी लगातार दिखाते आ रहे हैं। अब भारत सरकार की गाईड लाईन का पालन न किये जाने को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं हैं एवं सवाल भी खड़े किये जा रहे हैं।
टेण्डर प्रक्रिया अपनाने में परहेज क्यों?
डिस्ट्रिक्ट मिनरल फण्ड से दिव्यांगों को सहायक उपकरण सामग्री वितरण कराने के लिए 3 करोड़ रूपये की मंजूरी दे दी गयी, किन्तु सूत्र बताते हैं कि 1 लाख से ऊपर कोई भी क्रय की खरीदी की जानी है तो उसके लिए निविदाएं आवश्यक रूप से आमंत्रित की जानी चाहिए। भारत सरकार ने डीडीआरसी के संबंध में गाईड लाईन भी जारी किया है। जिसमें स्पष्ट कहा गया है कि यदि दिव्यांगों को सहायक उपकरण वितरण कराया जाना है तो एलिम्को कंपनी से ही वितरण कराया जायेगा। यदि एलिम्को किन्हीं कारणों से सामग्री देने से इंकार कर रही है तब सामान्य वित्तीय नियमों के तहत ईएमटी के देख-रेख में कार्यान्वयन एजेंसी द्वारा उपकरणों की खरीदी की जा सकती है। फिर यहां टेण्डर प्रक्रिया क्यों नहीं अपनायी गयी। इसके पीछे राज क्या है अभी कुछ कह पाना जल्दबाजी होगी लेकिन इसमें कुछ न कुछ गड़बड़झाला है ऐसी जनचर्चाएं हैं।
उपकरण की गुणवत्ता को लेकर एनजीओ घेरे में
दिव्यांगों को वितरित किये जा रहे सहायक उपकरण सामग्री की गुणवत्ता को लेकर चर्चित एनजीओ इन दिनों शक के घेरे में है। साथ ही एलिम्को संस्था व बेसिल कंपनी के सामग्री दर को लेकर भी अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर प्रश्र चिन्ह खड़ा होने लगा है। कहा जा रहा है कि डिस्ट्रिक्ट मिनरल फण्ड की राशि की बंदरबांट करने की नियत से सामग्रियों के क्वालिटी की जांच समुचित तरीके से नहीं करायी गयी है। साथ ही कन्वेंस को लेकर रोजगार सहायक व सचिव चिंतित हैं कि क्लस्टर पंचायतों में दिव्यांगों को लाने ले जाने का जो खर्च हो रहा है उसकी भरपाई कहां से होगी? सामाजिक न्याय विभाग से कोई लिखित निर्देश नहीं दिया जा रहा है।