Success Story : कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प को लेकर कोई आगे बढ़े तो फिर हर मुश्किल काम आसान हो जाता है कुछ ऐसा ही यूपीएससी का रिजल्ट जारी होने के बाद एक ‘गुदड़ी के लाल’ की संघर्ष भरी दास्तां पढ़ने को मिली है। जहां मूलत: बनारस के रहने वाले गोविंद जायसवाल अपनी सच्ची लगन से यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा पास कर करोड़ लोगों के प्रेरणा स्रोत बन गए हैं। आईएएस गोविंद जायसवाल साल 2006 में पहले प्रयास में ही 48वीं रैंक के साथ यूपीएससी क्रैक अपना नाम इतिहास में दर्ज किया. गोविंद ने बचपन से ही घर में काफी संघर्ष देखा.
Success Story : बता दें की गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले गोविंद जायसवाल ने बचपन में ही तय कर लिया था कि उन्हें आईएएस के अलावा और कुछ नहीं बनना है. तीन बड़ी बहनों और अपने माता-पिता के साथ वह 12 बाई 10 के कमरे में रहते थे। उन्होंने उस्मानपुर के एक सरकारी स्कूल से अपनी स्कूली पढ़ाई की। और वाराणसी के सरकारी डिग्री कॉलेज से गणित से ग्रेजुएशन डिग्री हासिल की। वाराणसी से ग्रेजुएशन हासिल करने के बाद उन्होंने सिविल सेवा की तैयारी के लिए दिल्ली चले गए।उनके पिता रिक्शा चलाकर परिवार का खर्च चलाते थे. गोविंद के पिता ने उनसे 15वीं तक पढ़ने को कहा था. दरअसल, उन्हें हाईस्कूल, इंटरमीडिएट या ग्रेजुएशन के के बारे में नहीं पता था. आसपास के लोगों ने उसने यह भी कहा कि अब गोविंद को भी रिक्शा चलाना चाहिए. लेकिन उन्होंने कभी जवाब नहीं दिया.
सातवीं क्लास में मां का हो गया था निधन
गोविंद जायसवाल के पिता नारायण जायसवाल रिक्शा चलाते थे. जबकि उनकी मां गृहणी थीं. जब गोविंद सातवीं क्लास में पढ़ते थे तो उनका ब्रेन हैमरेज से निधन हो गया था. बेटे की पढ़ाई के लिए पिता ने अपनी जमीन का एक टुकड़ा सिर्फ ₹4000 में बेच दी ताकि बेटे की पढ़ाई में किसी तरह की रुकावट ना हो। गोविंद अपने स्वयं के खर्च को पूरा करने के लिए गणित का ट्यूशन पढ़ाते थे। बाकी बचे समय में वह आईएएस की तैयारी करते थे। गोविंद की तीन बहनें हैं. पूरा परिवार काशी के अलईपुरा में 10 बाई 12 आकार की एक कोठरी में रहता था. Success Story
दोस्त के पिता ने किया अपमान
गोविंद जायसवाल बचपन में अपने एक दोस्त के घर मिलने गए थे. वह दोस्त न केवल अच्छा था बल्कि काफी करीबी था लेकिन जब गोविंद को दोस्त के पिता मिले तो गोविंद ने बताया कि पिता रिक्शा चलाते हैं। इस बात से दोस्त के पिता भड़कते हुए अपमानित कर जाने के लिए कह दिया। दोस्त के पिता के व्यवहार से अगले दिन गोविंद स्कूल पहुंचने टीचर से पूछा कि वह अपनी जिंदगी कैसे बदल सकते हैं जहां टीचर ने बताया कि पढ़ लिखकर या आईएएस बन जाओ या फिर बड़े बिजनेसमैन। शिक्षक द्वारा कही गई बातों का गोविंदा के मन में इस तरह घर कर गई की उसने आईएएस बनाने का दृढ़ संकल्प कर लिया। Success Story
पिता के त्याग और बलिदान को नहीं होने दिया जाया
गोविंद जायसवाल ने वाराणसी से ग्रेजुएशन करने के बाद 2006 में तैयारी करने दिल्ली आ गए. बेटे को दिल्ली में तैयारी करने भेजने के लिए पिता ने जमीन का एक टुकड़ा भी बेच दिया बल्कि अपने 11 अधिक से भी बेच दिए। पैर में सेप्टिक के बावजूद वह रिक्शा चलाकर बेटे को पढ़ाई का खर्च भेजते रहे. गोविंद ने अपने पिता के त्याग और बलिदान को जाया नहीं होने दिया। उन्होंने कड़ी मेहनत और लगन से साल 2007 में पहली बार में ही यूपीएससी परीक्षा 48वीं रैंक के साथ क्रैक की और आईएएस बने. Success Story