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    दुनियाभर मे अकेला यमराज का 300 साल पुराना मंदिर,नरक चौदस पर होती है विशेष पूजा;दूध,दही,शकर और शहद का लगता है भोग

    Pro VindhyaBy Pro VindhyaNovember 3, 2021Updated:November 10, 2021No Comments3 Mins Read
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    ग्वालियर – यमराज का नाम सुनते ही लोगो के पसीने छूटने लगते है लेकिन आज नरक चतुर्दशी है यानि यमराज की पूजा का दिन. मान्यताओं के अनुसार आज के दिन यमराज की पूजा की जाती है. ताकि उम्र के अंतिम दौर में इंसान को कष्ट न हो.दुनियाभर में यमराज का एकमात्र प्राचीन मंदिर मध्यप्रदेश के ग्वालियर में स्थित है। जहां पर साल में तीन बार यमराज की विशेष पूजा होती है। यहां यमराज की पूजा अर्चना करने के साथ ही उन्हें प्रसन्न करने के लिए अभिषेक करने के साथ ही विशेष प्रसाद का भोग लगाया जाता है।यहां आज भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है.

    फूलबाग में स्थित है यमराज का 300 साल पुराना मंदिर ग्वालियर के फूलबाग चौराहे पर मारकंडेश्वर के नाम से यह मंदिर लगभग 300 साल पुराना है।यमराज का ये मंदिर देश में अकेला होने के कारण पूरे देश में श्रद्धा और आस्था का केंद्र माना जाता है. मंदिर की सेवा कर रहे छठी पीढ़ी के पुजारी मनोज भार्गव बताते हैं कि मंदिर का निर्माण मराठा परिवार के संता जी राव तेमक ने कराया था। इस मंदिर में भगवान शिव के सामने यमराज हाथ जोड़कर बैठे हैं और मारकंडेश्वर शिवलिंग को पकड़े हैं, जिन्हें यमराज लेने आए हैं। जिस तरह से मूर्तियों को स्थापित किया गया है उनके अनुसार भगवान शिव नाराज होकर प्रकट हुए और वे यमराज को दंडित कर रहे हैं।यमराज की विशेष पूजा दिवाली के एक दिन पहले रूप चौदस, दीपावली के दो दिन बाद यम द्वितीया और मकर संक्रांति पर की जाती है। पूजा के लिए दूर-दराज से लोग यहां आते हैं। उन्होंनेे कहा कि लोग इसलिए भी यमराज की पूजा-अर्चना करते है ताकि यमराज उन्हें अंतिम समय में कष्ट न दे. 

    यमराज की पूजा से मिलता है लाभ 
    आज के दिन यमराज की पूजा का विशेष लाभ मिलता है. शाम के वक्त घर के द्वार पर, मंदिर, देववृक्ष और सरोवर के किनारे दीप जलाए जाते हैं. त्रयोदशी से 3 दिन तक दीप प्रज्ज्वलित करने से यमराज प्रसन्न होते हैं. कहा जाता है कि ऐसा करने से अंतकाल में व्यक्ति को यम यातना का भय नहीं होता. दीपदान से यम की पूजा करने पर नरक का भय भी नहीं सताता. यही वजह है कि आज के दिन को नरक चौदस के रूप में मनाया जाता है. 

    दूध, दही, शकर और शहद का लगता है भोग मंदिर के पुजारी ने बताया कि नरक चौदस के दिन यमराज का पूरे विधि विधान के साथ सरसों के तेल से अभिषेक किया जाता है। दूध, दही, शकर और शहद से भोग लगाया जाता है। शाम को चार बाती का दीपक दान किया जाता है, जो भक्त अपनी क्षमता के अनुसार चांदी, मिट्टी और आटे कामे दीपक में करते हैं। यह मंदिर श्रद्धा और आस्था का केंद्र माना जाता है।

    यमराज की पूजा की पौराणिक कथा
    यमराज की नरक चौदस पर पूजा अर्चना करने को लेकर पौराणिक कथा है. बताया जाता है कि यमराज ने भगवान शिव की तपस्या की थी. जिससे प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने यमराज को वरदान दिया था की आज से तुम हमारे गण माने जाओगे और दीपावली से एक दिन पहले नरक चौदस पर तुम्हारी पूजा की जाएगा. जो भी तुम्हारी पूजा अर्चना और अभिषेक करेगा उसे सांसारिक कर्म से मुक्ति मिलेगी। साथ ही आत्मा को कम से कम यातनाएं सहनी होंगी। जिसके बाद से ही नरक चौदस के दिन यमराज की विशेष पूजा अर्चना की जाती है.

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