श्रीराम को समर्पित प्राचीनतम मंदिरों में से एक है कुंभकोणम स्थित रामास्वामी मंदिर। इसका निर्माण 16वीं सदी में हुआ था।
वाल्मीकि लिखित रामायण को ‘शोक रामायण’ भी कहते हैं। यह इसलिए कि उसमें विरह और अकेलापन प्रमुख है। 15 वीं सदी में संस्कृत में एक बहुत रोचक ग्रंथ लिखा गया। इसका नाम है आनंद रामायण। इसके लेखक के बारे में तो कहीं उल्लेख नहीं लेकिन लोग श्रेय भी वाल्मीकि को ही दिया जाता है। ऐसा भी माना जाता है कि इसे शोक रामायण से पैदा हुए शोक को कम करने के लिए ही लिखा गया क्योंकि शोक रामायण में सिर्फ राम के दुख और अकेलेपन का वर्णन मिलता है। आनंद रामायण में रामराज्य की महिमा व शोभा पर काफी जोर दिया गया है।
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इसमें एक कहानी है,एक बार राम ने किसी की हंसी सुनी जिसे सुनते ही उन्हें सीताहरण और रावण की हंसी की याद आ गई। उन्हें याद आया कि जैसे ही वह रावण का सिर बाण मार कर काटते, अट्टाहस करता हुआ रावण का दूसरा सिर उग जाता। उन्हें ऐसा जान पड़ता, जैसे रावण उनकी हंसी उड़ा रहा हो। राम इस बात को नहीं समझ पा रहे थे कि रावण तो इस बात से खुश होकर हंस रहा था कि उसका सिर उसके पापी शरीर से अलग हो रहा था। हालांकि इस हंसी ने राम को काफी विचलित कर दिया।
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राम ने झुंझला कर अयोध्या में हंसने पर रोक लगा दी। जो हंसता उसे जेल भेज दिया जाता। इसके परिणाम बहुत बुरे हुए। लोगों ने त्योहार मनाना, एक-दूसरे से मिलना जुलना, गाना-बजाना सब कुछ बंद कर दिया। उन्होंने खेलना और बाजार जाना भी बंद कर दिया। इतना ही नहीं, लोगों ने एक-दूसरे की तरफ इस डर से देखना तक बंद कर दिया कि कहीं हंसी न आ जाए।
चूंकि पूजा-पाठ और त्योहार सब बंद हो गया इसलिए भगवान भी नाराज होने लगे। उन्होंने ब्रह्मा से शिकायत की और ब्रह्मा बरगद के पेड़ के रूप धर कर अयोध्या पहुंचे। जैसे ही एक पेड़ काटने वाला पेड़ के पास पहुंचा, ब्रह्मा ने हंसना शुरू कर दिया। पेड़ की हंसी सुन कर पेड़ काटने वाला भी हंसे बिना नहीं रह सका। उसकी हंसी सुन कर उसके परिवार वाले और दोस्त भी हंसने लगे। धीरे-धीरे यह संक्रामक हंसी राजदरबार तक पहुंच गई और राम खुद हंसने लगे।
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राम इससे बहुत झुंझलाए और उन्हें इसकी जांच के आदेश और हंसने वाले पेड़ को काटने के लिए कहा। हालांकि जो भी इस पेड़ के पास जाता उसे अहसास होता कि यह पेड़ तो पत्थर फेकता है। जब राम पत्थर फेकने वाले इस पेड़ के बारे में पता चला तो उन्होंने खुद ही इस हंसने और पत्थर फेंकने वाले पेड़ को काटने का फैसला किया। राम के इस फैसले से डरे हुए ब्रह्मा ने गुरु वाल्मीकि से मदद मांगी।
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वाल्मीकि राम के पास गए और बोले, ‘आनंद रामायण लिखने का मेरा उद्देश्य ही लोगों के चेहरे पर मुस्कान लाना और गुदगुदाना है। इसके जरिए वह लोगों की जिंदगी में खुशियां लाना चाहते हैं क्योंकि खुशी ही सौभाग्य की देवी लक्ष्मी को आकर्षित करती है। उन्होंने राम को हंसने पर लगाई गई रोक के आदेश को वापस लेने की प्रार्थना की। उन्होंने राम से कहा, ‘आपको क्यों लगता है कि लोग आप पर हंस रहे हैं। आप भगवान होकर भी यह क्यों नहीं समझ पा रहे कि असल में हंसी ही है, जो लोगों को मुक्त करती है। लोगों को हंसने की इजाजत देकर आप उन्हें मुक्त कर रहे हैं। आपको अपने देवत्व पर संशय क्यों है/ महर्षि वाल्मीकि की इन बातों से भगवान राम संतुष्ट हुए और उन्होंने हंसने पर लगाई गई रोक को वापस ले लिया। खबर सोर्स नवभारत टाइम्स डॉट कॉम से लिया गया है।
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