MP News सिंगरौली। सिंगरौली विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी रेनू शाह की लगातार स्थिति पतली होती नजर आ रही है इसके पीछे उनका दो दशक से चुनाव लड़ना एवं एक जाति विशेष तक सीमित राजनीतिक करना माना जा रहा है। क्षेत्र की जनता उनकी कार्यप्रणाली को पसंद नहीं कर रही है। यही कारण है कि चुनाव में उन्हें जनता का समर्थन मिलता दिखाई नहीं दे रहा है। यह भी सही है कि रेनू शाह कांग्रेस के दिग्गज नेता अजय सिंह राहुल के बेहद करीबी मानी जाती हैं और उनकी ही कृपा से उन्हें टिकिट दिया गया। लेकिन अभी तक अजय सिंह राहुल ने रेनू शाह के समर्थन में एक भी दौरा नहीं करना चर्चा का विषय बना हुआ है। वहीं भाजपा प्रत्याशी रामनिवास शाह के समर्थन में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने चुनावी रैली के बाद से राजनीतिक फिजा बदल हुई नजर आ रही है। ऐसे में रेनू साह किसके दम पर सिंगरौली क्षेत्र में अपना जन आधार तैयार करेंगी यह समय बताएगा।
गौरतलब है कि कांग्रेस से अपना राजनीतिक सफर तय करने वाली रेनू साह की बात जब होती है तो उन्हें जिले का सबसे बड़ा दल बदलू का तमगा मिला है। वह कांग्रेस, सपा, बसपा के टिकट पर कई बार चुनाव लड़ चुकी हैं। रेनू साह और उनके पति अशोक साह दो दशक से ज्यादा समय से महापौर, विधानसभा और लोकसभा चुनाव लड़ते आ रहे हैं। वह खुद को साहू समाज का नेता भले मानती हैं लेकिन समाज भी हर बार इन्हें वोट दे देकर ऊब चुका है। रेनू साह को मिलने वाली चुनौतियों का प्रमुख कारण उनकी संकीर्ण राजनीति व उनका अपनी ही जाति के प्रति अधिक मोह होना भी चर्चा का विषय बना है। रेनू साह का इस बार जाति समीकरण भी फिट नहीं बैठ रहा है। वहीं साहू समाज में अब चर्चा होने लगी की रेनू साह राजनीति की बेहद महत्वाकांक्षी हैं। वह समाज के किसी और व्यक्ति को आगे बढ़ते नहीं देखना चाहती। जबकि साहू समाज ने हर बार सर आंखों पर बैठाया और सपोर्ट किया। अब रेनू शाह को जहां एक तरफ साहू समाज से तो वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के विधानसभा दावेदारों से चुनौती मिल रही है जिन्हें टिकट नहीं मिला। MP News
जाति ध्रुवीकरण भी रेनू को कर रहा परेशान
इस बार भाजपा और कांग्रेस ने साहू समाज से अपने प्रत्याशी उतारे हैं तो वहीं बसपा से भाजपा से बागी हुए चंद्र प्रताप विश्वकर्मा चुनाव मैदान में आकर भाजपा कांग्रेस का समीकरण बिगाड़ दिया है। इस लिहाज से यदि सिंगरौली जिले का जाति समीकरण देखा जाए तो रेनू साह के लिए यह बिल्कुल फिट नहीं बैठता। क्योंकि यहां का मतदाता कई चुनाव में जाति ध्रुवीकरण के हिसाब से वोट करता आया है। कांग्रेस या बीजेपी से जब कोई अन्य जाति का व्यक्ति चुनाव लड़ता था तो साहू समाज उसे वोट नहीं करता था बल्कि अपने स्वजाति को वोट करता था। यही कारण है कि इस चुनाव में भी वही गणित चल रहा है अब जब कांग्रेस ने रेनू शाह को टिकट दिया है। तब अन्य जाति के मतदाता भी यही सोच रहे हैं कि रेनू शाह को वोट क्यों दिया जाए। इसलिये जातीय समीकरण के हिसाब से भी रेनू की स्थिति मजबूत दिखाई नहीं दे रही है। MP
राजा बाबा की हार से कांग्रेस को लगा था सबसे बड़ा झटका
चुनाव में सबसे ज्यादा ध्रुवीकरण जाति और धर्म के नाम पर होता है धर्म और जाति के आधार पर ध्रुवीकरण के लिए पार्टी भी प्रत्याशी चुनाव में उतरते हैं। कांग्रेस के लिए सिंगरौली सीट हमेशा से एक पहेली रही है 2013 में भुवनेश्वर प्रताप सिंह राजा बाबा को टिकट मिला तो एक जाति विशेष का ध्रुवीकरण हुआ और कांग्रेस चुनाव हार गई। चर्चा है कि राजा बाबा की हार से कांग्रेस को बड़ा झटका लगा था। इस चुनाव में रेनू शाह ने अगर कांग्रेस को पूरे मन से सपोर्ट किया होता तो संभवत वह चुनाव जीत जाते।इसके बाद कांग्रेस ने 2018 में रेनू शाह को चुनाव मैदान में उतारा ताकि बड़े स्तर पर इस समुदाय के लोग आकर्षित हो। बावजूद इसके रेनू साह कड़े मुकाबले के बाद भी चुनाव हार गई। MP News