कलेक्टर उक्त मामले को लेकर गंभीर, तहसीलदार के नेतृत्व में दुबारा बालिका गृह में पहुंची थी जांच टीम
सिंगरौली।नवजीवन बिहार में संचालित गायत्री बालिका गृह के मामले में जांच प्रक्रिया तेज हो गई है। कलेक्टर के निर्देश पर तीन सदस्यीय जांच टीम आज फिर से गृह केन्द्र पहुंची थी। बालिका गृह केन्द्र में जांच टीम ने क्या पूछा, क्या पाया, इस पर अब तक किसी अधिकारी ने एक शब्द भी बोलने से परहेज़ किया है।
गौरतलब है कि नगर निगम के वार्ड क्रमांक 32 नवजीवन बिहार सेक्टर नम्बर 1 में अमृत सेवा संस्थान द्वारा संचालित गायत्री बालिका गृह पर कई सनसनीखेज गंभीर आरोप लगे हैं। पिछले सप्ताह प्रधान मजिस्ट्रेट किशोर न्याय बोर्ड एवं विशेष न्यायाधीश पास्को के द्वारा संयुक्त रूप से गायत्री बालिका गृह का रूटीन निरीक्षण किया गया था। इस दौरान एक बालिका अपनी हाथ की कलाई में नुकीले धारदार से खरोच ली थी। कलाई में ब्लड जैसे के निशान को देख न्यायाधीश के द्वारा पूछतांछ की गई। जहां एक-एक बालिकाओं ने चौकाने वाला बयान देकर सबको हैरत में डाल दिया।
सूत्र बताते हैं कि बालिका गृह के संचालिका मॉ-बेटी पर मानसिक उत्पीड़न करने का आरोप लगाई थी। बालिकाओं की पीड़ा एवं व्यथा सुनने के बाद प्रधान मजिस्ट्रेट के द्वारा उक्त मामले की जांच विशेष न्यायाधीश पास्को को निर्देशित किया गया। साथ ही इसकी जानकारी कलेक्टर को दी गई। कलेक्टर ने तहसीलदार सविता यादव के नेतृत्व में तीन सदस्यीय जांच टीम गठित किया। जहां उक्त मामले की उच्च स्तरीय जांच चल रही है। जानकारी के अनुसार उक्त मामले में अभी तक प्रधान मजिस्ट्रेट किशोर न्याय बोर्ड एवं विशेष न्यायाधीश पास्को के द्वारा दो बार बालिका गृह में जांच करने पहुंच चुकी हैं। हालांकि इस बार अकेले विशेष न्यायाधीश पास्को ही जांच करने गई थी। वहीं यह पता नही चल पाया है कि जांच में क्या-क्या हुआ है।
इधर कलेक्टर गौरव बैनल के निर्देश पर जांच टीम दूसरी दफा बालिकाओं के बीच पहुंची थी, जांच टीम ने क्या-क्या पूछतांछ, जांच पड़ताल की है। यह पता नही चल पाया है। हो सकता है कि जांच टीम को बालिकाओं की काउंसलिंग भी करनी थी। कलेक्टर के जांच टीम में तहसीलदार, सिविल सर्जन और जिला पंचायत लेखाधिकारी लगातार दौरे कर रहे हैं, लेकिन सभी ने मीडिया से दूरी बना रखी है। कोई भी अधिकारी यह बताने को तैयार नहीं कि बालिकाओं से क्या पूछताछ की गई और क्या पाया गया। हालांकि उक्त मामला इन दिनों काफी चर्चाओं में है और प्रशासन के द्वारा उठाये जा रहे कदम को देख आईसीडीएस अमला भी सख्ते में है।
डीपीओ की आंखों पर पट्टी थी या कुछ और?
गायत्री बालिका गृह के सचांलिका एवं उसकी मॉ-बेटी पर लगे गंभीर आरोप के बीच सवाल यह है कि महिला एवं बाल विकास विभाग के जिला कार्यक्रम अधिकारी आखिर आंखों पर पट्टी क्यों बंधे थे या फिर उसके पीछे कुछ और ही वजह रही। आरोप है कि जब उक्त गृह में स्टाफ नही हैं और निर्धारित मापदण्ड को पूरा नही किया जा रहा है, फिर विगत दो वर्षो से संचालित गायत्री बालिका गृह को हरी झण्डी किसने दिया था। जब यहां स्टाफ नही है, सिर्फ मॉ-बेटी गृह को संचालित कर रही हैं, ऐसे में पूर्व से लेकर वर्तमान डीपीओ भी सवालों में घिरते जा रहे हैं। सवाल किया जा रहा है कि आखिर बिना स्टाफ पूर्ति के उक्त बालिका गृह को संचालित करने की अनुमति कैसे दी गई। इसके अलावा अन्य कई मामला जुड़ा है। ऐसे में डीपीओ की कार्यप्रणाली पर उंगली उठना लाजमी है।
डीएमएफ फंड पर कइयो ने टिका रखी थी नजरें
इधर सूत्रों के दावों से चर्चा और गर्म हो गई है। बताया जा रहा है कि गायत्री बालिका गृह ने डीएमएफ फंड पर भी नजरें टिका रखी थीं। पहले के डीपीओ ने इसकी अनुशंसा की थी, वहीं एक स्थानीय नेता ने भी भवन निर्माण और अन्य खर्चों के लिए तत्कालीन कलेक्टर चंद्रशेखर शुक्ला को पत्र लिखा था। निरीक्षण भी हुए, रिपोर्टें भी बनीं—लेकिन बालिकाओं की समस्याएं किसी रिपोर्ट में क्यों नहीं दिखीं? यह बड़ा सवाल है। फिलहाल, मामले ने आईसीडीएस अमले की कार्यप्रणाली, निगरानी तंत्र की कमजोरी, और अनुमति देने की प्रक्रिया सभी पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। अब नजरें जांच रिपोर्ट और कलेक्टर की अगली कार्रवाई पर टिकी हैं, जो यह तय करेगी कि यहां लापरवाही हुई या व्यवस्था में कहीं बड़ा छेद है।
