करोड़ों लीटर पानी हो गया बर्बाद, सड़क के किनारे मिट्टी का लगा ढ़ेर
सिंगरौली: जिला मुख्यालय के बीचोंबीच अमृत जल योजना का पानी पिछले सात दिनों से खुलेआम नाली में झरने की तरह बह रहा है, लेकिन जिम्मेदार विभाग और अफसर कान में तेल डालकर सोए हुए हैं। 10 एचपी के बराबर दबाव से चल रही इस लाइन से विशेषज्ञ प्रतिदिन औसतन 1 से 1.50 लाख लीटर पानी बहने की क्षमता मानते हैं, यानी एक हफ्ते में लगभग 10–15 लाख लीटर साफ़ पेयजल बिना मीटर घूमे, बिना राजस्व आए नाली में समा चुका है।
सरकारें पानी के संरक्षण की बाद करते हैं, कार्यक्रम में कई करोड़ रुपए खर्च किए जाते हैं लेकिन यह सही है कि औशतन प्रतिदिन अमृत जल नाली में पहुंच रहा है। यह वही ‘नॉन‑रेवेन्यू वॉटर’ है, जिसके बारे में राष्ट्रीय रिपोर्टें चेतावनी दे चुकी हैं कि कई भारतीय शहरों में 30–40 फीसदी तक पीने का पानी इसी तरह लीकेज और चोरी से ग़ायब हो जाता है।
अजीब विडंबना यह है कि जहां यह पानी बह रहा है, वहीं पर नगर निगम का मुख्यालय भी स्थित है, यानी जिन अफसरों को शहर की बूंद‑बूंद बचाने की जिम्मेदारी दी गई है, उनके दफ्तर के बाहर ही हफ्ते भर से अमृत जल की नहर बह रही है। अमृत 2.0 की परिचालन गाइडलाइन साफ़ कहती हैं कि हर नगर निकाय को लीकेज मापन, जल‑ऑडिट और नॉन‑रेवेन्यू वॉटर घटाने के लिए अलग सैल बनाना है, ज़ोनवार लीकेज मैपिंग करनी है और किसी भी तरह के रिसाव पर तत्काल असरदार कार्रवाई करनी है। लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि यहां न तो पानी रोका गया, न प्रेशर कम किया गया, न ही पाइपलाइन को ट्रेस करने के लिए आधुनिक उपकरण लगाए गए, बस खानापूर्ति के लिए गड्ढा खोदकर अमृत जल को नाली में मिला दिए हैं और यह अमृत जल पानी में बह रहा है।
सड़क के किनारे मिट्टी का ढेर
गैस पाइपलाइन बिछाने के नाम पर ठेकेदारों ने सड़क खोदकर निकली मिट्टी उसी के किनारे ढेर कर दी है, जिससे पहले से ही संकरी सड़क और सिमट गई है। पैदल चलने वालों को मजबूरन आधी सड़क पर उतरकर चलना पड़ रहा है, नतीजा यह कि जरा‑सी लापरवाही पर दुर्घटना का खतरा बना रहता है। चार‑पहिया वाहन गुजरते ही सूखी मिट्टी का गुबार उठकर पूरे माहौल में फैल जाता है, जबकि अध्ययन बताते हैं कि ऐसी निर्माण‑संबंधी धूल में मौजूद महीन कण सांस और हृदय दोनों के लिए खतरनाक होते हैं। सड़क कटिंग के लिए जारी मानक निर्देश साफ कहते हैं कि खुदाई के बाद मिट्टी को ढंककर जल्द से जल्द हटाना और धूल नियंत्रण के उपाय करना ठेकेदार की जिम्मेदारी है, लेकिन यहां नियमों की खुली अनदेखी हो रही है।
एक सप्ताह में करोड़ों लीटर पानी बर्बाद
जिला मुख्यालय पर सात दिन से चल रहा यह लीकेज सिर्फ एक पाइप टूटने की घटना नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की संवेदनहीनता की पोल खोल रहा है, जहां अधिकारी अपने चैंबर से ही हर घर नल, हर घर जल के प्रेजेंटेशन देते हैं, वहीं बाहर गड्ढे से निकलती अमृत जल की धार और शहर में कूड़े का ढेर उन्हें आईना दिखा रही है। पांच एचपी की सबमर्सिबल या सेंट्रीफ्यूगल पम्प की डिस्चार्ज क्षमता आमतौर पर 1 से 1.50 लाख लीटर प्रतिदिन तक होती है, जब उसे लगातार चलाया जाए। बता दें कि अमृत जल की मेन पाइप गैस पाइपलाइन डालने के दौरान टूटने के बाद से 24 घंटे ऐसे ही बह रही है, इसलिए सामान्य अनुमान पर कम से कम 120,000 लीटर प्रतिदिन तो नाली में जा ही रहा है।
