मुहेर के हजारों ग्रामीण और चड्ढा–कलिंगा के हजारों वर्कर की जान खतरे में
सिंगरौली। एनसीएल के अमलोरी–निगाही क्षेत्र में सुरक्षा व्यवस्था का हाल एक बार फिर नंगा हो चुका है। मुहेर वार्ड जाने वाले मार्ग पर कंक्रीट पाइप की पुलिया टूटी पड़ी है, और अब यह साधारण क्षति नहीं, बल्कि एक खुला मौत का फंदा बन चुकी है। बीच सड़क में पाइप टूटकर भरभरा गई है, सरिया बाहर निकल आए हैं, और पूरा रास्ता एक ऐसे गड्ढे में तब्दील हो चुका है जिसमें किसी भी दिन खून बह सकता है। लेकिन एनसीएल से लेकर ओबी कंपनियों तक सभी के दफ्तरों में हर तरफ वही पुरानी चुप्पी,वही पुराना काम चल रहा है, वाला ढर्रा।
बता दें यह मुहेर वही मार्ग है जिससे चड्ढा और कलिंगा कंपनी के हजारों मजदूर रोजाना गुजरते हैं। सुबह से रात तक भारी वाहनों की आवाजाही और मजदूरों की लगातार आवक-जावक इस जगह को सिंगरौली के सबसे जोखिम भरे रास्तों में खड़ा कर देती है। दिनभर मजदूर, महिलाएँ, स्कूल के बच्चे और भारी वाहन इसी रास्ते से गुजरते हैं, लेकिन सुरक्षा की जिम्मेदारी उठाने वाली कंपनियाँ और प्रशासन जैसे नींद में डूबे पड़े हैं, मानो हादसा पहले हो, तब जाकर किसी फाइल में चेतना आएगी। यह गड्ढा चेतावनी नहीं, लापरवाही का खुला प्रमाण है, और अगर हालात ऐसे ही रहे तो यह गड्ढा भविष्य की किसी बड़ी दुर्घटना का अकेला गवाह बनकर खड़ा होगा। सच यह है कि अगर कंपनियाँ और प्रशासन अभी भी नहीं जागे, तो यह सिर्फ टूटा पाइप नहीं रहेगा, यह जिम्मेदारों की लापरवाही की कब्र का पत्थर साबित होगा, और उसकी तारीख भी जल्द ही किसी खबर की हेडलाइन में दर्ज हो सकती है।
ओवी के पहाड़ों से अक्सर कट जाती है सडक
चर्चा है कि अगर यह गड्ढा किसी बड़े अधिकारी की गाड़ी के रास्ते में पड़ा होता, तो 24 घंटे के अंदर भर भी जाता और मरम्मत भी हो जाती। लेकिन जब खतरा मजदूरों का हो, तो फाइलों का बोझ उठाने वाले कलमवीर अफसर, हमेशा की तरह अपनी आरामकुर्सी से उठना भी जरूरी नहीं समझते। स्थानीय लोग बताते हैं कि बारिश के दिनों में ओबी पहाड़ के पानी बहने से सड़कें टूट जाती है, इस जगह कई बार मजदूर और बाइक चालक फिसलकर गिर चुके हैं। कुछ घायल हुए, कई चोटिल भी। लेकिन कोई रिपोर्ट नहीं, क्योंकि हादसा छोटा था, पीड़ित मजदूर था, और कंपनी बड़ी थी।
भ्रष्टाचार, जवाबदेही और सुरक्षा सिर्फ दिखावा
सुरक्षा के नाम पर एनसीएल हर साल करोड़ों रुपये खर्च करती है, लेकिन टूटा पाइप दिखाता है कि ये करोड़ रुपए आखिर बहते कहाँ हैं। पाइप की गुणवत्ता से लेकर निर्माण की मजबूती तक सबकुछ भ्रष्टाचार की ओर इशारा करता है। अगर सुरक्षा योजनाओं और सड़क मरम्मत के नाम पर जारी करोड़ों रुपये सही जगह लगते, तो मजदूरों को इस मौत के गड्ढे के ऊपर से जान जोखिम में डालकर नहीं गुजरना पड़ता। यह सिर्फ एक पाइप नहीं टूटा है, यह एनसीएल की जवाबदेही, पारदर्शिता और सुरक्षा नीति का मुखौटा टूटकर गिरा है।
बड़ी दुर्घटना की उलटी गिनती शुरू
अगर हालात ऐसे ही रहे तो यह टूटा पाइप किसी भी पल बड़ी दुर्घटना में बदल सकता है और तब वही पुरानी लाइने गूँजेंगी – हम जांच कर रहे हैं, दोषियों पर कार्रवाई होगी,
लेकिन तब तक शायद बहुत देर हो चुकी होगी। अभी भी मौका है, यदि एनसीएल कंपनी और प्रशासन जग जाएँ। वरना यह गड्ढा केवल गड्ढा नहीं रहेगा, यह जिम्मेदारों की लापरवाही की कब्र का निशान भी बन सकता है।
