नई दिल्ली। यह तस्वीर सिर्फ एक पल नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की आत्मा को दिखाती है। वर्ष 1995 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री केशूभाई पटेल के शपथग्रहण समारोह की यह दुर्लभ तस्वीर आज सोशल मीडिया पर चर्चा में है। इस तस्वीर में भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी और प्रमोद महाजन कुर्सी पर बैठे दिखाई दे रहे हैं, जबकि उनके सामने दरी पर एक साधारण कार्यकर्ता शांत भाव से बैठा है — वही कार्यकर्ता आगे चलकर भारत का प्रधानमंत्री बना।
वह कार्यकर्ता हैं नरेंद्र मोदी, जिन्होंने जमीनी स्तर से राजनीति की शुरुआत की, कार्यकर्ता से संगठन मंत्री बने, मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे और आज देश के सर्वोच्च पद — प्रधानमंत्री के रूप में भारत का नेतृत्व कर रहे हैं। यह तस्वीर उस संघ और भाजपा की कार्यसंस्कृति का प्रमाण है, जहां पद नहीं, परिश्रम और निष्ठा सम्मान तय करती है।
यह दृश्य आज के युवाओं के लिए प्रेरणा है कि अगर आपके भीतर देशभक्ति, समर्पण और कर्मनिष्ठा है तो कोई भी ऊँचाई असंभव नहीं। यही वह लोकतंत्र है जहां एक चाय बेचने वाला बालक, एक संघ का समर्पित स्वयंसेवक, दरी पर बैठने वाला कार्यकर्ता — आज विश्व मंच पर भारत का गौरव बढ़ा रहा है।
यह सिर्फ नरेंद्र मोदी की यात्रा नहीं, बल्कि “संगठन सर्वोपरि” के उस मंत्र की जीत है, जो बताता है कि भाजपा और आरएसएस में वंश नहीं, कार्य और त्याग की परंपरा चलती है। यह तस्वीर हमें याद दिलाती है — भारत में लोकतंत्र अब भी जीवित है, जहां कोई भी नागरिक संघर्ष से शिखर तक पहुंच सकता है।
