अमलोरी खदान में उड़ रही धूल, और उड़ गए एनजीटी के नियम कायदे, धूल ऐसे उड़ती है जैसे कोहरा, ड्राइवर कुछ देखें या जान बचाएं, हर समय बना रहता है हादसे की संभावना
सिंगरौली। एनसीएल अमलोरी परियोजना में “जीरो प्रतिशत पॉल्यूशन का दावा उसी तरह चमक रहा है, जैसे धूल भरे आसमान में सूरज ढूँढना। काग़ज़ों पर सब हरा-भरा, खदानों पर आंखों में जलन और सांसों में मिट्टी—यही है क्लीन माइनिंग मॉडल! एनजीटी के आदेश शायद फ़ाइलों में सो रहे हैं और वॉटर स्प्रिंकलर भी अधिकारियों के दौरे का टाइम-टेबल पूछकर ही जागते हैं। लोग कहते हैं कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और कंपनी में बड़ी समझ-बूझ है—वरना इतनी धूल के बीच रिपोर्ट कैसे इतनी साफ़ निकलती। खदानों में कोयला निकाला जा रहा है, सच्चाई नहीं—क्योंकि यहाँ धूल ज्यादा और जवाबदेही कम है।

बता दें कि खदान क्षेत्र में ओवर बर्डन हटाने का काम करने वाली कलिंगा कंपनी सुरक्षा और पर्यावरण के नियमों को ताक पर रखकर काम कर रही हैं। खदान क्षेत्र में लगातार डंपर और मशीनें चलने से उठने वाली धूल से आसपास का इलाका धुंधला रहता है, ऐसा लगता है जैसे आसमान में कोहरा छा गया है,लेकिन ओबी कंपनियों द्वारा नियमित पानी का छिड़काव नहीं किया जा रहा है। स्थानीय मजदूरों और ग्रामीणों ने बताया कि सड़क पर दिनभर मिट्टी उड़ती रहती है। डंपरों की आवाजाही के दौरान धूल के गुबार से न तो मजदूरों को साफ दिखाई देता है और न ही आने-जाने वाले वाहनों को जबकि आए दिन इसी उड़ रही धूल से हादसे होते है। सूत्र बताते हैं कि सीसीएल के अधिकारी और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के जिम्मेदार कलिंगा ओबी कंपनियों से साथ गांठ कर हर महीने लाखों रुपए में सुविधा शुल्क लेते हैं। यही वजह है कि ओबी कंपनी नियमों को जूते के नोक पर रखकर ओबी खनन का काम कर रहे हैं।
खदान में उड़ रही धूल, उड़ गए एनजीटी के नियम-कायदे
खनन क्षेत्रों में धूल ऐसे उड़ रही है जैसे एनजीटी के नियमों को चुनौती दे रही हो। प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के दिशा-निर्देशों के मुताबिक हर घंटे पानी छिड़काव जरूरी है, मगर जमीन पर हकीकत यह है कि टैंकर और स्प्रिंकलर तभी जागते हैं जब बड़े साहब का विजिट तय हो। तब वह भी ऐसे चलते हैं जैसे परेड में हिस्सा ले रहे हों। बाकी समय धूल की सरकार और नियम किताबों की शोभा बन कर रह गए हैं। ओबी कंपनियाँ दिखावे के पानी छिड़काव में माहिर हो चुकी हैं वास्तविक नियंत्रण बस रिपोर्टों में सिमट कर रह गया है। खदान में उड़ रही धूल बता रही हैं यहाँ पालन नहीं, बस दिखावा होता है।
एनसीएल की जीरो पॉल्यूशन सफेद झूठ
एनसीएल ने दावा किया है कि वह जीरो प्रतिशत प्रदूषण में कोयला उत्पादन कर रही है। मज़दूरों से पूछें तो सच्चाई धूल के गुबार जितनी साफ दिखती है—आंखों में जलन, सांस लेने में दिक्कत, और सुरक्षा के नाम पर मास्क तक नहीं। पानी छिड़काव? वो सिर्फ रिपोर्ट में होता है, ज़मीन पर धूल ऐसे उड़ती है जैसे “क्लीन माइनिंग” का मज़ाक उड़ा रही हो। खदानों में कोयला रोज निकलता है, पर साफ हवा सिर्फ अधिकारियों के दफ्तरों में मिलती है। मज़दूरों की खांसी कहती है। जीरो पॉल्यूशन नहीं, जीरो ईमानदारी।
इनका कहना है
खदानों में धूल उड़ रही है, पानी का छिड़काव नहीं हो रहा है, इसकी जानकारी नहीं है, इस संबंध में जानकारी लेने के बाद ही कुछ कह पाएंगे।
रामविजय सिंह – पीआरओ – एनसीएल