Bhopal : Desk Report : भोपाल के बागेश्वर धाम (Bageshwar Dham) के पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री कथाकार देवकीनंदन ठाकुर से अचानक मिलने पहुंचे। इस दौरान पंडाल जयकारों (Cheers) से गूंज उठा. भक्तो (Devotees) ने दोनों पर खूब फूल बरसाए।
Bhopal : दरअसल भोपाल में देवकीनंदन ठाकुर (Devkinandan thakur) की कथा चल रही थी, जिसका आखिरी दिन शनिवार था. इसके समापन पर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री (Pandit Dhirendra Krishna Shastri) उनसे मिलने पहुंचे। दोनों की मुलाकात की ये फोटो खूब वायरल (viral) हुई. दोनों के मिलन पर श्रद्धालुओं ने खूब पुष्पवर्षा की। कार्यक्रम स्थल पर मौजूद प्रशंसक दोनों कथाकारों से मिलकर अभिभूत हो गए। साथ ही पंडाल जयकारों से गूंज उठा.
भगवान कृष्ण का दिया संदेश
कथा के दौरान देवकीनंदन ठाकुर ने भगवान श्री कृष्ण के गीता श्लोक का वर्णन करते हुए कहते हैं कि यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्. अर्थ: इस श्लोक में श्रीकृष्ण कहते हैं कि जब जब इस पृथ्वी पर धर्म की हानि होती है. विनाश का कार्य होता है और अधर्म आगे बढ़ता है. तब-तब मैं इस पृथ्वी पर आता हूं और यहां पर अवतार लेता हूं.
20 हजार की क्षमता, 60 हजार पहुंचे श्रद्धालु
वहीं शुक्रवार से विदिशा में पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की कथा शुरू हो गई है। आयोजन समिति ने करीब 20 हजार श्रद्धालुओं के लिए आयोजन स्थल पर पंडाल का निर्माण कराया है, लेकिन स्थिति यह है कि पहले ही दिन श्रद्धालुओं की संख्या 60 हजार के पार पहुंच गई है. श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के कारण आयोजन स्थल की व्यवस्थाएं बाधित रहीं। पंडाल में पहुंचने से पहले ही पुलिस को भक्तों को रोकना पड़ा। श्रद्धालुओं ने सड़क किनारे बैठकर कथा का आनंद लिया।
पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने क्या कहा
कथा के पहले दिन कथावाचक पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री व्यास पीठ से कहते हैं, विदिशा विद्धानों की नगरी है, लेकिन हम अनपढ़ और गंवार हैं। जबरदस्ती हमें व्यास पीठ पर बैठा देते हो तो बैठना पड़ता है. व्यास पीठ पर बैठते हैं तो उन्हें बोलना भी पड़ता है। बोलते हैं तो हम दिखते हैं, लेकिन असल में हनुमानजी ही हमारी लाज बचाते हैं। विदिशा का जिक्र करते हुए पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने कहा, मुझे यहां लोगों के माथे पर तिलक देखना अच्छा लगता है। यह एक अति प्राचीन हिन्दू नगरी है। इतना ही नहीं, केवल हिंदू ही नहीं, बल्कि जैन धर्म के दसवें तीर्थंकर भी यहीं जन्में थे।